भारत की मिट्टियाँ
भारत की मिट्टियाँ विविधता और उर्वरता में अद्वितीय हैं, जो कृषि उत्पादन और जैव विविधता को समृद्ध बनाती हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाने वाली ये मिट्टियाँ प्राकृतिक संसाधनों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो यहां की फसलों, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती हैं।
मृदा या मिट्टी( Soils)
मृदा पत्थर, मलवा एवं जैव सामग्री का मिश्रण होती है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं, मृदा का विकास हजारों वर्षों में होता हैं, अपक्षय और क्रमण के कारक जनक सामग्री पर कार्य करके मिट्टी या मृदा की एक पतली परत का निर्माण करते हैं.
मृदा निर्माण को प्रवावित करने वाले मुख्य कारक हैं- उच्चावच, जनक सामग्री, जलवायु, वनस्पति, मानवीय क्रियाएं.
भारत की मिट्टी का वर्गीकरण
भारत में मिट्टी का वर्गीकरण भौगोलिक स्थितियों, जलवायु, और शैल पदार्थों के आधार पर किया गया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई बार मृदा के वैज्ञानिक सर्वेक्षण किये गए थे. इसके बाद वर्ष 1956 में स्थापित मृदा सर्वेक्षण विभाग ने दामोदर घाटी में अध्ययन किए. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारतियों मृदाओं को उनकी प्रकृति एवं उनके गुणों के आधार पर मिट्टी को मुख्यतः 8 प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया है।
- इंसेप्टीसोल्स
- एंटीसोल्स
- एल्फीसोल्स
- वर्टिसोल्स
- एरिडीसोल्स
- अल्टीसोल्स
- मोलीसोल्स
- अन्य
भारत के मिट्टी के प्रकार
भारत की प्रमुख मिट्टियों का वर्गीकरण उसके उत्पति, रंग अवस्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया गया है, यहाँ उन मिट्टियों का विवरण दिया गया है, भारत में मिट्टी के प्रकार निम्न हैं.
जलोढ़ मिट्टी
जलोढ़ मिट्टी उत्तरी मैदानों, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र नदियों के क्षेत्र, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, और पूर्वी तटीय मैदान में पाई जाती हैं. यह मिट्टी नदी के द्वारा निक्षेपित की गई है। यह उपजाऊ होती है और इसमें पोटाश की मात्रा अधिक एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है। नाइट्रोजन और ह्यूमस की कमी होती है। यह मिट्टी भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग पर पाई जाती हैं. जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती है. –बांगर(Bangar) और खादर (Khadar).
खादर प्रत्येक वर्ष बाढ़ के पानी द्वारा निक्षेपित होता है, जबकि बांगर पुराना जलोढ़ मिट्टी होता हैं. बांगर मिट्टी का जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है. इस मिट्टी रंग हलके धूसर से राख जैसा होता है. यह मिट्टी गेहूं, धान, गन्ना, तिलहन, दलहन, जूट के लिए उपयुक्त हैं।
काली मिट्टी (रेगुर मिट्टी)
काली मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के टूटने से होता हैं, इस मिट्टी में पानी को बनाए रखने की अच्छी क्षमता होती है। इसमें चुना, लौह, मैग्नीशियम तथा एलुमिना के तत्व अधिक मात्रा में पाया जाता है, इसके साथ ही पोटाश की मात्रा भी पाई जाती है। लेकिन इस मिट्टी में फास्फोरस, नाइट्रोजन की कमी होती है. यह मिट्टी कपास की खेती के लिए बहुत उपयुक्त होती है। इसलिए इसे कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है. मुख्यत: काली मृदाएँ गीली होने पर फुल जाती है और चिपचिपी हो जाती है. सूखने पर सिकुड़ जाती है. काली मिट्टी भारत में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में पाई जाती है. इस मिट्टी में कपास, तंबाकू, ज्वार, दालें, और गेहूं को उगाया जाता हैं।
लाल और पीली मिट्टी
लाल मृदा का विकास दक्कन के पठार के पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले उन क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ रवेदार आग्नेय चट्टान पाई जाती है. सामान्यतः इसका निर्माण जलवायविक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप होता हैं. इस मिट्टी में सिलिका एवं आयरन की बहुलता पाई जाती है. इस मिट्टी में लोहे का अंश अधिक पाया जाता है, इसलिए इस मिट्टी का रंग लाल होती हैं. लेकिन जलयोजित होने के कारण यह पीली दिखाई देती हैं. इस मिट्टी में मुख्यतः ह्यूमस, नाइट्रोजन, फास्फोरस की कमी होती है. यह मिट्टी कपास, रागी, गेंहूँ, तंबाकू, दालें, और ज्वार की फसल के लिए उपयुक्त हैं।
लेटेराइट मिट्टी
यह मिट्टी उच्च तापमान और भारी वर्षा के कारण बनती है। ये मृदाएँ उष्ण कटिबंधीय वर्षा के कारण हुए तीब्र निक्षालन के परिणाम स्वरुप बनती है. भारी वर्षा के कारण चुना और सिलिका का निक्षालन हो जाता है परन्तु लोहे का आक्साइड एवं एल्मुनियम शेष रह जाती है. इसमें नाइट्रोजन, इसमें जैविक पदार्थों की कमी होती है, लेकिन यह अच्छी जल धारण क्षमता रखती है। भारत में यह मिट्टी पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, असम, मेघालय, और छत्तीसगढ़ में पाई जाती हैं. यह मिट्टी चाय, कॉफी, काजू, और नारियल के लिए सर्वोतम है।
रेगिस्तानी मिट्टी
यह मिट्टी रेत और बजरी से बनी होती है। इसमें पानी की कमी होती है और जैविक पदार्थ बहुत कम होते हैं। सिंचाई द्वारा इसे उपजाऊ बनाया जा सकता है। यह राजस्थान, गुजरात, और पंजाब के कुछ हिस्से में पाई जाती हैं। यह मिट्टी बाजरा, ज्वार के लिए उपयुक्त है.
पर्वतीय मिट्टी
यह मिट्टी पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है और विभिन्न प्रकार के जैविक पदार्थों से समृद्ध होती है। इसमें जल धारण क्षमता अच्छी होती है। इस मिट्टी का क्षेत्र हिमालय क्षेत्र, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम हैं।
पीट और दलदली मिट्टी
इस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की उच्च मात्रा होती है, लेकिन इसमें नाइट्रोजन की कमी होती है। यह गीली और अम्लीय होती है। यह केरल, पश्चिम बंगाल का सुंदरवन क्षेत्र में पाई जाती हैं.
लवण मृदाएँ
लवण मिट्टी को ऊसर मिट्टी भी कहा जाता है. ये मिट्टी शुष्क तथा जलाक्रांत क्षेत्र में पाई जाती हैं. इसमें चुने की कमी होती हैं, प्राय: यह मिट्टी तटीय इलाकों में पाई जाती है.
भारत में मिट्टी का प्रतिशत
भारत में मिट्टी का प्रतिशत निम्न है:
- जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil): लगभग 40% यह मिट्टी मुख्य रूप से उत्तर भारत के गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में पाई जाती है।
- काली मिट्टी (Black Soil): लगभग 15% – यह मिट्टी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाई जाती है और कपास की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
- लाल और पीली मिट्टी (Red and Yellow Soil): लगभग 18% – यह मिट्टी ओडिशा, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।
- लेटेराइट मिट्टी (Laterite Soil): लगभग 5% – यह मिट्टी केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और असम के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।
- रेगिस्तानी मिट्टी (Desert Soil): लगभग 4% – यह मिट्टी राजस्थान और गुजरात के रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाती है।
- पहाड़ी मिट्टी (Mountain Soil): लगभग 8% – यह मिट्टी हिमालयी क्षेत्रों जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पाई जाती है।
- लवण मिट्टी (Saline Soil): लगभग 1% – यह मिट्टी गुजरात, राजस्थान और कुछ तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
मिट्टी के प्रकार का चार्ट
भारत की मिट्टियों को निम्न चार्ट के माध्यम से समझ सकते है.
भारत की मिट्टी की विविधता इस देश की कृषि और फसल पैटर्न को प्रभावित करती है। विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु, शैल पदार्थ, और सिंचाई सुविधाओं के आधार पर फसलों का चयन किया जाता है।
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