भारत के मजदूर आंदोलनों और संगठनों का इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही शुरू हो गया था। ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय समाज में गहरे बदलाव किए थे। बड़े पैमाने पर मजदूर वर्ग का उदय हुआ जिन्होंने अपने अधिकारों और बेहतरी के लिए संघर्ष किया। इसके परिणामस्वरूप अनेक मजदूर संगठनों का गठन हुआ जिन्होंने देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आर्टिकल में भारत के प्रमुख मजदूर संगठन का इतिहास और उनके संस्थापकों के योगदान के बारें में विवरण दी गई हैं।
भारत के प्रमुख मजदूर संगठन
19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में प्रमुख मजदूर संगठनों का गठन हुआ था. जिसने श्रमिकों के हितों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था। इन संगठनों ने न केवल आर्थिक सुधारों की मांग की बल्कि सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भी अपना योगदान दिया था।
बंबई मिल हैड्स एसोसिएशन (1890)
भारत में मजदूर संगठनों का प्रारंभिक इतिहास बंबई (मुंबई) से जुड़ा है। 23 सितम्बर 1884 में नारायण मेघाजी लोखंडे ने बंबई मिल हैड्स एसोसिएशन की स्थापना किया था। यह भारत का पहला श्रमिक संगठन था जिसने मजदूर इ आवाज को उठाना शुरू किया था। इस संगठन ने मुख्य रूप से कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूरों की समस्याओं को उठाया था। एन एम लोखंडे ने मजदूरों के कार्यदिवस को घटाकर 10 घंटे करने और सप्ताह में एक दिन अवकाश देने की माँग किया था जो उस समय एक बड़ी उपलब्धि थी। यह संगठन मजदूरों की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए आवाज़ उठाने का प्रारंभिक प्रयास था जिसने भविष्य के आंदोलनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
बम्बई कामगार हितवर्द्धिनी सभा (1909)
वर्ष 1909 में वी.आर. नारे, एस.के. बोले, एन.ए. ताले, और केरकर ने बम्बई कामगार हितवर्द्धिनी सभा की स्थापना किया था। इस सभा का मुख्य उद्देश्य मजदूरों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारना था। यह संगठन मजदूरों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनके लिए सरकारी योजनाओं की वकालत करने के लिए काम करता था। इसके साथ ही सभा ने औद्योगिक विवादों को सुलझाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभया था।
सामाजिक सेवा संघ (1911)
वर्ष 1911 में नारायण मल्लहार जोशी (N M Joshi) ने सामाजिक सेवा संघ की स्थापना किया था। इस संगठन का मुख्य लक्ष्य मजदूरों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करना था। एन.एम. जोशी ने शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य कल्याणकारी सेवाओं पर ध्यान केंद्रित किया और मजदूरों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास के कार्यक्रम चलाया था।
मद्रास मजदूर संघ (1918)
1918 में वी.पी. वाडिया द्वारा स्थापित मद्रास मजदूर संघ दक्षिण भारत का पहला प्रमुख मजदूर संगठन था। इस संघ ने दक्षिण भारत के कपड़ा मिल मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। यह संगठन क्षेत्रीय मजदूर आंदोलनों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत बना था। डी. वीरराघवन ने अपनी किताब ‘मेकिंग ऑफ़ द मद्रास वर्किंग क्लास‘ में मद्रास मज़दूर संघ के बारे में लिखा है.
अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन (1918)
अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन भारत के सबसे प्रमुख और सफल श्रमिक संगठनों में से एक है। इसकी स्थापना वर्ष 1918 में महात्मा गांधी द्वारा किया गया था. गांधीजी ने इस संगठन के माध्यम से अहिंसक आंदोलन की तकनीकों का प्रयोग किया और मजदूरों के अधिकारों के लिए सत्याग्रह का प्रयोग किया था। गांधीजी के नेतृत्व में यह संगठन श्रमिक आंदोलनों में अहिंसा और नैतिकता के सिद्धांतों को शामिल करने का प्रतीक बन गया।
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) (1920)
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना वर्ष 1920 में एन.एम. जोशी, जोसेफ बैपटिस्टा, लाला लाजपत राय, और वी.एम. पवार द्वारा स्थापित किया गया था. अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) भारतीय श्रमिक आंदोलन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था एवं यह भारत का पहला राष्ट्रीय स्तर का मजदूर संगठन था जिसका उद्देश्य मजदूरों की समस्याओं को राष्ट्रीय मंच पर उठाना था। AITUC ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ श्रमिक अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया और औद्योगिक विवादों के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाया था।
ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन (1923)
वर्ष 1923 में वी.वी. गिरि द्वारा स्थापित ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन ने भारतीय रेलवे में काम करने वाले कर्मचारियों के अधिकारों और कल्याण के लिए संघर्ष किया था। यह संगठन रेलवे कर्मचारियों के लिए बेहतर वेतन, कार्यदिवस में सुधार और उनके लिए सुरक्षा उपायों की वकालत किया था।
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन फेडरेशन (AITUF) (1929)
एन.एम. जोशी ने अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन फेडरेशन (AITUF) की स्थापना वर्ष 1929 में किया था। यह संगठन AITUC से अलग था और इसका मुख्य उद्देश्य मजदूरों के कल्याण के लिए काम करना था।
लाल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (1931)
इस संगठन की स्थापना वर्ष 1931 में देशपांडे द्वारा किया गया था. लाल ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने मजदूर आंदोलनों को क्रांतिकारी दिशा दिया था। यह संगठन मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के साथ-साथ साम्यवादी विचारधारा को बढ़ावा देता था।
भारतीय श्रमिक परिसंघ (1941)
वर्ष 1941 में एम.एन. राय द्वारा स्थापित भारतीय श्रमिक परिसंघ ने साम्यवाद के सिद्धांतों के आधार पर मजदूर आंदोलनों को संगठित किया था। एम.एन. राय का मानना था कि श्रमिकों को न केवल आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है, बल्कि उन्हें राजनीतिक रूप से भी जागरूक होना चाहिए।
इंडियन फेडरेशन ऑफ लेबर (1941)
इस संगठन की स्थापना वर्ष 1941 में जमनालाल मेहता द्वारा स्थापित किया गया था. इंडियन फेडरेशन ऑफ लेबर ने भारतीय श्रमिक वर्ग के अधिकारों और कल्याण के लिए काम किया था। यह संगठन विभिन्न उद्योगों के मजदूरों को एक मंच पर लाने और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए कार्यरत था।
भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) (1947)
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वर्ष 3 मई 1947 में इस संगठन को स्थापित किया था. भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के श्रमिक संगठन के रूप में उभरा था। यह संगठन स्वतंत्रता के बाद भारत के श्रमिक आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाया था.
प्रथम फैक्ट्री अधिनियम, 1881
प्रथम फैक्ट्री अधिनियम, 1881 भारतीय श्रमिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण कानून था जिसे ब्रिटिश सरकार ने भारतीय मजदूरों की स्थिति में सुधार के उद्देश्य से लागू किया। यह अधिनियम मुख्य रूप से कपड़ा उद्योग में काम करने वाले मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया था।
इसके प्रमुख प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल थे:
- 7 से 12 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए कार्य समय सीमा निर्धारित की गई, जो अधिकतम 9 घंटे प्रति दिन थी।
- सप्ताह में चार छुट्टियों का प्रावधान किया गया।
- कारखानों में मशीनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपाय किए गए।
द्वितीय फैक्ट्री अधिनियम, 1891
यह अधिनियम प्रथम फैक्ट्री अधिनियम 1881 में संशोधन के रूप में लाया गया था और उसमें कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थे।
इसके प्रमुख प्रावधानों में शामिल थे:
- 9 वर्ष से कम आयु की लिए बाल श्रम पर प्रतिबन्ध लगाया था
- बच्चों के लिए कार्य की समय सीमा घटाया गया था।
- रात की पाली में महिलाओं और बच्चों के काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया।
- सभी कारखानों में स्वास्थ्य और सफाई के मानकों को लागू करने के लिए निरीक्षण की व्यवस्था की गई।
यह अधिनियम बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ाने के साथ-साथ श्रमिकों की कामकाजी स्थितियों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
भारत के प्रमुख मजदूर संगठन की सूची
भारत के प्रमुख मजदूर संगठन की सूची नीचे दी गई है. यह सूची आगामी विभिन्न प्रकार परीक्षाओं के लिए महत्त्वपूर्ण साबित होंगें.
मजदूर संगठन | संस्थापक | स्थापना |
बंबई मिल हैड्स एसोसिएशन | नारायण मेघाजी लोखंडे | 1890 |
बम्बई कामगार हितवर्द्धिनी सभा | वी.आर. नारे, एस.के. बोले एन.ए. ताले केरकर | 1910 |
सामाजिक सेवा संघ | एन.एम. जोशी | 1911 |
मद्रास मजदूर संघ | वी.पी. वाडिया | 1918 |
अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन | महात्मा गांधी | 1918 |
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन काग्रेस (AITUC) | एन.एम. जोशी जोसेफ बैपटिस्टा, लाला लाजपत राय, वी.एम. पवार | 1920 |
ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन | वी.वी. गिरि | 1923 |
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन फेडरेशन (AITUF) | एन.एम. जोशी | 1929 |
लाल ट्रेड यूनियन कांग्रेस | देशपांडे | 1931 |
भारतीय श्रमिक परिसंघ | एम.एन. राय | 1941 |
इंडियन फेडरेशन ऑफ लेबर | जमनालाल मेहता | 1941 |
भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड | सरदार वल्लभ भाई पटेल | 1947 |
भारतीय मजदूर आंदोलनों का इतिहास संघर्षों और सुधारों से भरा हुआ है। इन संगठनों ने न केवल मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी बल्कि समाज में जागरूकता भी फैलाई थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मजदूर संगठनों ने राजनीतिक आंदोलनों को भी समर्थन दिया था.
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