प्रधान मंत्री धन धान्य कृषि योजना, आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP) से प्रेरित एक महत्वपूर्ण योजना है. यह योजना 3C मॉडल (कन्वर्जेन्स, कोलैबोरेशन और कम्पटीशन) पर आधारित है, जिससे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल बढ़ेगा और जिलों के बीच प्रतिस्पर्धा भी कायम रहेगी।
कवरेज:
इस योजना के तहत कुल 100 जिलों को शामिल किया जाएगा। जिलों का चयन तीन मुख्य मानकों के आधार पर किया जाएगा:
- फसल उत्पादकता का कम स्तर
- सामान्य फसल या शस्य गहनता (Cropping Intensity)
- औसत से कम कृषि ऋण वितरण
फसल या शस्य गहनता क्या है?
यह मापता है कि किसी खेत का प्रभावी उपयोग कितनी बार हो रहा है, यानी एक कृषि वर्ष में उस खेत में कितनी बार फसल उगाई जा रही है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2021-22 में औसत फसल गहनता 155% रही है।
योजना की प्रेरणा:
प्रधान मंत्री धन धान्य कृषि योजना (PMDKY) योजना आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP) से प्रेरित है, जिसकी शुरुआत 2018 में हुई थी।
परिव्यय:
केंद्रीय बजट में इस योजना के लिए अलग से कोई धनराशि निर्धारित नहीं की गई है।
कार्यान्वयन रणनीति:
यह योजना राज्य सरकारों के सहयोग से लागू की जाएगी। इसके साथ ही, पहले से चल रही विभिन्न कृषि योजनाओं का लाभ (कन्वर्जेन्स) भी इस योजना के तहत उठाया जाएगा।
आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP) के बारे में
आकांक्षी जिला कार्यक्रम की शुरुआत 2018 में की गई थी। नीति आयोग ने राज्य सरकारों के सहयोग से इस कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य देश के 112 सबसे पिछड़े जिलों का तेज़ और प्रभावी विकास सुनिश्चित करना है।
यह कार्यक्रम 3C मॉडल पर आधारित है, जिसमें शामिल हैं:
- कन्वर्जेन्स: केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का समन्वय।
- कोलैबोरेशन: केंद्र एवं राज्य के नोडल अधिकारियों और जिला कलेक्टर्स के बीच सहयोग।
- कम्पटीशन: जिलों के बीच मासिक डेल्टा रैंकिंग के माध्यम से प्रतिस्पर्धा।
कार्यक्रम में प्रत्येक जिले की अपनी क्षमता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। साथ ही, तुरंत सुधार के लिए सरल लक्ष्यों की पहचान की जाती है। जिलों को मासिक आधार पर रैंकिंग दी जाती है ताकि उनकी प्रगति का सही आकलन किया जा सके।
रैंकिंग का आधार:
जिलों की प्रगति को 49 प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों के आधार पर मापा जाता है, जो निम्नलिखित पाँच मुख्य सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों से जुड़े होते हैं:
- स्वास्थ्य और पोषण
- शिक्षा
- कृषि और जल संसाधन
- वित्तीय समावेशन और कौशल विकास
- अवसंरचना
- यह प्रणाली जिलों को लक्ष्य-निर्धारण और प्रभावी कार्यान्वयन में मदद करती है।
प्रधान मंत्री धन धान्य कृषि योजना (PMDKY) का उद्देश्य
भारत में कृषि क्षेत्र की स्थिति और उसकी चुनौतियाँ
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी प्रदान करती है और देश के समग्र आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
Note:
- वित्त वर्ष 2024 में भारत के GVA में कृषि का योगदान 18% रहा।
- 46.1% आबादी कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगी हुई है।
- दूध, दाल और मसालों के उत्पादन में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है।
- फलों, सब्जियों, चाय, मत्स्य पालन (फार्मड फिश), गन्ना, गेहूं, चावल, कपास और चीनी के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है।
कृषि उत्पादन और उपज का हाल:
वित्त वर्ष 2023 में भारत का कुल कृषि उत्पादन लगभग 329.7 मिलियन टन रहा। बावजूद इसके, कई प्रमुख फसलों में भारत की उपज चीन, ब्राजील और अमेरिका जैसे देशों के मुकाबले काफी कम है। उदाहरण के लिए, भारत में चावल की औसत उपज 2,191 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि वैश्विक औसत 3,026 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इसी तरह, गेहूं की औसत उपज 2,750 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत 3,289 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से कम है।
भारत में कम कृषि उपज के मुख्य कारण
लघु एवं खंडित भूमि जोत: नाबार्ड के अनुसार, 2021-22 में भारत में औसत खेत का आकार केवल 0.74 हेक्टेयर था। छोटे खेत होने के कारण मशीनरी और सिंचाई सुविधाओं का सही उपयोग करना मुश्किल होता है, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है।
मानसून पर निर्भरता: लगभग 51% कृषि भूमि वर्षा पर निर्भर है, जो अनियमित या कम बारिश के कारण फसल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
सिंचाई की कमी: भारत की लगभग 48.65% बुवाई योग्य भूमि अभी भी असिंचित है। पूरी सिंचाई क्षमता हासिल होने के बाद भी लगभग 40% भूमि वर्षा पर निर्भर रहेगी।
आधुनिक तकनीक का सीमित उपयोग: उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक और उन्नत कृषि उपकरणों का कम उपयोग कृषि उत्पादकता को सीमित करता है।
मृदा क्षरण और रसायनों का दुरुपयोग: मृदा अपरदन, लवणता और जैविक पदार्थों की कमी से उत्पादन कम होता है।
ऋण और निवेश की कमी: भारत में लगभग 12.56 करोड़ लघु और सीमांत किसान हैं, जिनमें से केवल 20% किसानों को ही बैंकों से ऋण मिलता है।
कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकारी पहलें
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): 2007-08 से शुरू, इसका उद्देश्य प्रमुख अनाजों जैसे चावल, गेहूं, दाल, मोटे अनाज आदि का सतत उत्पादन बढ़ाना है।
प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (2015): ‘हर खेत को पानी’ और ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए सिंचाई कवरेज और जल उपयोग दक्षता बढ़ाना।
प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): 2019 से किसानों को सालाना 6,000 रुपये की आय सहायता तीन किस्तों में प्रदान की जाती है।
कृषि अवसंरचना निधि: फसल कटाई के बाद प्रबंधन और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों में निवेश के लिए मध्यम और दीर्घकालिक ऋण उपलब्ध कराना।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि: 2018-19 से खरीफ, रबी और अन्य वाणिज्यिक फसलों के लिए MSP बढ़ाकर किसानों को लागत का कम से कम 50% लाभ सुनिश्चित किया गया।
किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना: कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना, जिसे 2019 में पशुपालन, डेयरी और मात्स्यिकी क्षेत्र में भी बढ़ाया गया।
प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (2016): फसल नुकसान की स्थिति में बीमा कवरेज प्रदान कर किसानों की आय सुरक्षा करना और आधुनिक तकनीक अपनाने को प्रोत्साहित करना।
पोषक तत्व आधारित सब्सिडी नीति (2010): उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना, खासकर नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का।
निष्कर्ष
भारत में खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास और आर्थिक समृद्धि के लिए कृषि उत्पादकता बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए आधुनिक सिंचाई तकनीकें, मशीनीकरण, उच्च उपज वाले बीज और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना होगा। इसके साथ ही किसानों को बेहतर बाजार पहुंच, वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण उपलब्ध कराना भी जरूरी है। भारत की कृषि को वैश्विक मानकों के अनुरूप विकसित करने के लिए सरकार की नीतिगत सहायता, नवाचार और ग्रामीण अवसंरचना के समेकित विकास की आवश्यकता है।
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