लवंग (Clove): इतिहास, पहचान और खेती की सम्पूर्ण जानकारी

लवंग (Clove): इतिहास, पहचान और खेती की सम्पूर्ण जानकारी

लवंग (Clove) द्वीप के नाम से प्रसिद्ध ज़ांज़ीबार

अफ्रीका के पूर्वी तट से लगे हिंद महासागर में स्थित ज़ांज़ीबार को “लवंग द्वीप” के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र तंजानिया का हिस्सा है और केवल एक द्वीप नहीं, बल्कि कई द्वीपों का समूह है, जिनमें उंगुजा (आमतौर पर ज़ांज़ीबार कहा जाता है) और पेम्बा सबसे प्रमुख हैं।

इस विशेष उपनाम का कारण यह है कि एक समय ज़ांज़ीबार विश्व में सबसे अधिक लवंग उत्पादन का केंद्र था। यहां की मिट्टी और मौसम इस सुगंधित मसाले की खेती के लिए अत्यंत अनुकूल थे।

लवंग (Clove) का ऐतिहासिक सफर

लवंग (Clove) (Syzygium aromaticum) की उत्पत्ति इंडोनेशिया के मालुकु द्वीपसमूह से मानी जाती है, जिन्हें “स्पाइस आइलैंड्स” कहा जाता है। लगभग 200 ईसा पूर्व में जावा द्वीप से चीन के सम्राटों के दरबार में लवंग उपहारस्वरूप ले जाई जाती थी। यह परंपरा इतनी लोकप्रिय थी कि दरबार में उपस्थित होने से पहले लोग लवंग को मुँह में रखते थे ताकि उनकी सांस सुगंधित रहे।

10वीं से 12वीं शताब्दी में लवंग का व्यापार श्रीलंका के बंदरगाहों से होने लगा था। इसके बाद मध्यकालीन यूरोप में इसका उपयोग भोजन को संरक्षित करने और स्वाद बढ़ाने के लिए होने लगा।

16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने लवंग के स्रोतों पर नियंत्रण पाया, जिसे 17वीं सदी में डचों ने हथिया लिया। डच व्यापारियों ने इसकी खेती को कुछ विशेष द्वीपों तक सीमित कर दिया ताकि कीमतें अधिक बनी रहें। 18वीं सदी में फ्रांसीसी व्यापारियों ने लवंग के पौधे चोरी-छिपे हिंद महासागर के द्वीपों और अमेरिका तक पहुँचा दिए।

वर्तमान उत्पादन परिदृश्य

हालिया आँकड़ों के अनुसार, इंडोनेशिया अब भी दुनिया का सबसे बड़ा लवंग उत्पादक देश है। इसके बाद मेडागास्कर, कोमोरोस, तंजानिया और श्रीलंका जैसे देश इस सूची में आते हैं। भारत में भी इसकी खेती होती है, विशेषकर तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के पहाड़ी इलाकों में। वर्ष 2001-02 में भारत में 1,891 हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 1,047 टन लवंग का उत्पादन किया गया था।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता

लवंग की खेती के लिए नम उष्णकटिबंधीय जलवायु और उपजाऊ दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह पौधा लाल मिट्टी और पश्चिमी घाट के ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में भी अच्छी तरह से पनपता है।

  • वर्षा: 150–300 सेमी वार्षिक वर्षा आवश्यक है।
  • ऊँचाई: समुद्र तल से लेकर 1500 मीटर तक की ऊँचाई पर यह फसल उगाई जा सकती है।
  • मिट्टी की जल निकासी: पानी का जमाव नुकसानदेह होता है, इसलिए उचित जल निकासी अत्यंत आवश्यक है।

ज़ांज़ीबार और लवंग की अनोखी सुगंध

ओमान के सुल्तान सैयद सईद के शासनकाल में ज़ांज़ीबार में लवंग की खेती को बहुत बढ़ावा मिला, खासकर पेम्बा द्वीप पर। आज भी इस द्वीप पर घूमने पर लोगों को हवा में लवंग की मिठास से भरी सुगंध महसूस होती है। भले ही अब ज़ांज़ीबार शीर्ष उत्पादक न हो, पर लवंग के साथ इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान अमिट है।

लवंग सिर्फ एक मसाला नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर और सुगंधित विरासत है। इसकी खेती प्राकृतिक परिस्थितियों पर गहराई से निर्भर करती है और यदि सही जलवायु, मिट्टी और देखभाल मिले, तो यह किसानों के लिए एक लाभकारी फसल बन सकती है।

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