Geographical Indication

Geographical Indication-GI Tag-in Hindi

Geographical Indication – GI-भौगोलिक संकेतक

भारत में भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication – GI) टैग एक महत्वपूर्ण पहचान प्रणाली है जो किसी उत्पाद की विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति और उसके विशेष गुणों को दर्शाता है। यह टैग मुख्य रूप से कृषि उत्पाद, प्राकृतिक वस्त्र, हस्तशिल्प, और औद्योगिक उत्पादों को दिया जाता है, जो उस विशेष क्षेत्र की पारंपरिक जानकारी और सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए हैं।

भौगोलिक संकेतक का महत्व-जीआई टैग

Geographical Indication-भौगोलिक संकेतक टैग का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता को पहचानता है और उसे एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से जोड़ता है। यह उत्पादक समुदायों को आर्थिक लाभ पहुँचाने के साथ-साथ उनके सांस्कृतिक और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने में मदद करता है। जीआई टैग से उत्पाद की पहचान और प्रतिष्ठा बढ़ती है, जिससे वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करना आसान हो जाता है।

भौगोलिक संकेतक जीआई टैग के लाभ

1. गुणवत्ता और प्रामाणिकता की गारंटी: जीआई टैग उत्पाद की उच्च गुणवत्ता और विशिष्टता की गारंटी देता है, जिससे उपभोक्ता को एक भरोसेमंद उत्पाद प्राप्त होता है।
2. आर्थिक विकास: जीआई टैग से जुड़े उत्पादकों को उनके उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य मिलते हैं, जिससे उनके आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
3. सांस्कृतिक संरक्षण: यह टैग स्थानीय पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में मदद करता है।
4. वैश्विक पहचान: जीआई टैग उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान और प्रतिष्ठा मिलती है, जिससे निर्यात में वृद्धि होती है।

भारत में कुछ प्रमुख जीआई टैग वाले उत्पाद

भौगोलिक संकेतक-भारत में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को जीआई टैग प्रदान किए गए हैं, जो उनकी विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति और गुणों को दर्शाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख उदाहरण हैं:

1. दार्जिलिंग चाय: पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग चाय अपनी विशिष्ट खुशबू और स्वाद के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसे जीआई टैग मिलने से इसके उत्पादकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में विशेष पहचान मिली है।
2. कांचीपुरम सिल्क साड़ी: तमिलनाडु की ये साड़ियाँ अपनी विशेष बुनाई और डिज़ाइन के लिए जानी जाती हैं। जीआई टैग ने इन साड़ियों की वैश्विक मांग को बढ़ाया है।
3. कोल्हापुरी चप्पल: महाराष्ट्र की ये चप्पलें अपने हाथ से बने डिज़ाइन और टिकाऊपन के लिए प्रसिद्ध हैं। जीआई टैग मिलने से इनके कारीगरों को बेहतर मूल्य और पहचान मिली है।
4. पश्मीना शॉल: जम्मू और कश्मीर की यह शॉल अपनी मुलायमता और उत्कृष्टता के लिए जानी जाती है। जीआई टैग ने इसकी विशिष्टता और प्रामाणिकता को मान्यता दी है।
5. मैसूर सैंडलवुड ऑयल: कर्नाटक का यह उत्पाद अपनी सुगंध और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है। जीआई टैग ने इसके उत्पादकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में मदद की है।

भौगोलिक संकेतक

जीआई टैग प्राप्त करने की प्रक्रिया

1. आवेदन: किसी भी उत्पाद के लिए जीआई टैग प्राप्त करने के लिए संबंधित भौगोलिक क्षेत्र का कोई संगठन या संस्था आवेदन कर सकती है।
2. जांच और प्रमाणन: आवेदन की जांच की जाती है और सत्यापित किया जाता है कि उत्पाद वास्तव में उस भौगोलिक क्षेत्र का है और उसमें विशिष्ट गुण हैं।
3. पंजीकरण: सत्यापन के बाद, उत्पाद को जीआई टैग प्रदान किया जाता है और इसे रजिस्टर में दर्ज किया जाता है।

जीआई पंजीकरण अधिनियम

भारत में भौगोलिक संकेतक पंजीकरण अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of Goods Registration and Protection Act, 1999) के तहत जीआई टैग प्रदान किए जाते हैं। यह अधिनियम उत्पादकों को उनके उत्पादों की विशिष्टता और गुणवत्ता की सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे उनके आर्थिक और सांस्कृतिक हित सुरक्षित रहते हैं।

बिहार का जी आई टैग

भागलपुरी जर्दालु

कृषि

शाही लीची का बिहार

कृषि

कतर्नी चावल

कृषि

मगही पान

कृषि

मिथिला मखाने

कृषि

मार्चा चावल

कृषि

सिलाओ खाजा

खाना सामग्री

मधुबनी चित्रकारी

हस्तशिल्प

अधिरोपण (खतवा) काम का बिहार

हस्तशिल्प

सुजिनी कढ़ाई

हस्तशिल्प

सिक्की घास उत्पादों का बिहार

हस्तशिल्प

भागलपुर रेशम

हस्तशिल्प

सिक्की घास उत्पाद

हस्तशिल्प

अधिरोपण (खतवा) काम (Applique (Khatwa) Work )

हस्तशिल्प

सुजिनी कढ़ाई काम का बिहार

हस्तशिल्प

मंजूषा कला

हस्तशिल्प

 

निष्कर्ष

भारत में भौगोलिक संकेतक टैग स्थानीय उत्पादकों, कारीगरों, और किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है, जो उनके उत्पादों को वैश्विक मंच पर पहचान और प्रतिष्ठा दिलाने में मदद करता है। जीआई टैग न केवल उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता को मान्यता देता है, बल्कि स्थानीय समुदायों के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जीआई टैग से जुड़े उत्पादों की मांग और मूल्य दोनों ही बढ़ते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण होता है।

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