
डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में 26 दिसम्बर २०२४ को AIIMS दिल्ली में निधन हो गया. वे भारत के 14वें प्रधानमंत्री और प्रख्यात अर्थशास्त्री होने के साथ साथ एक दूरदर्शी नेता और भारत के आर्थिक सुधारों के शिल्पकार थे. उन्होंने 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की। वे अपनी विनम्रता और बौद्धिकता के लिए प्रसिद्ध थे. इसके साथ ही उन्होंने आधुनिक भारत के विकास में अमूल्य योगदान दिए थे।
मनमोहन सिंह: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गाह नामक गांव (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उन्होंने 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की एवं इसके बाद, 1957 में उन्होंने ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी. फिल की उपाधि प्राप्त की। उनका शोध प्रबंध, जो बाद में “इंडिया’स एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रॉस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ-सस्टेन्ड ग्रोथ” के रूप में प्रकाशित हुआ, भारत की व्यापार नीति की आलोचना प्रस्तुत करता है।
शैक्षणिक और पेशेवर करियर
डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की और पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र पढ़ाया। उनकी बौद्धिक क्षमता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, और उन्होंने कुछ समय के लिए यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (UNCTAD) के साथ काम किया था। वर्ष 1987 से 1990 के बीच, उन्होंने जिनेवा में साउथ कमीशन के महासचिव के रूप में सेवा दी।
वर्ष 1971 में, उन्होंने वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में भारत सरकार के साथ अपने प्रशासनिक करियर की शुरुआत की। इसके बाद, उन्होंने कई प्रमुख पदों पर काम किया, जिनमें मुख्य आर्थिक सलाहकार (1972), वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष शामिल हैं।
वित्त मंत्री के रूप में भूमिका (1991-1996)
वर्ष 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, तब डॉ. मनमोहन सिंह को पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री नियुक्त किया गया था। उनके नेतृत्व में सरकार ने क्रांतिकारी आर्थिक सुधार लागू किए, जिनमें रुपये का अवमूल्यन, आयात शुल्क में कटौती, करों में कमी, राज्य संचालित उद्योगों का निजीकरण, और विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देना शामिल थे। इन सुधारों ने न केवल अर्थव्यवस्था को स्थिर किया, बल्कि भारत को आर्थिक विकास और वैश्वीकरण के लिए तैयार किया। डॉ. सिंह के इन प्रयासों ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई, और उन्हें आधुनिक भारत की उदारीकृत अर्थव्यवस्था का वास्तुकार माना जाता है।
राजनीतिक करियर और प्रधानमंत्री के रूप में उदय
डॉ. मनमोहन सिंह वर्ष 1991 में राज्यसभा (संसद के उच्च सदन) के सदस्य बने और कई वर्षों तक इस पद पर रहे। वर्ष 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत के बाद, पार्टी की नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद से इनकार करते हुए डॉ. सिंह को इस भूमिका के लिए नामित किया। 22 मई, 2004 को उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली, जिससे उनके ऐतिहासिक कार्यकाल की शुरुआत हुई।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (2004-2014)
डॉ. मनमोहन सिंह ने दो लगातार कार्यकाल पूरे किए – 2004 से 2009 और 2009 से 2014 तक। उनके नेतृत्व में भारत ने तेज आर्थिक विकास का अनुभव किया, जिससे देश एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा।
प्रमुख उपलब्धियां
आर्थिक विकास: उनके नेतृत्व में भारत की अर्थव्यवस्था ने अभूतपूर्व गति से विकास किया, विदेशी निवेश बढ़ा और बुनियादी ढांचे का विस्तार हुआ।
सामाजिक कल्याण: उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से गरीबी कम करने पर ध्यान केंद्रित किया।
परमाणु समझौता: 2005 में, उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ एक ऐतिहासिक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर बातचीत की, जिससे भारत को परमाणु ईंधन और प्रौद्योगिकी तक पहुंच मिली।
चुनौतियां
उनकी सफलता के बावजूद, डॉ. मनमोहन सिंह को अपने कार्यकाल के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। बढ़ती तेल की कीमतों के कारण महंगाई बढ़ी, जिससे गरीबों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी पर असर पड़ा। वर्ष 2008 में, अमेरिका-भारत परमाणु समझौते को लेकर उनके गठबंधन सरकार में राजनीतिक विरोध बढ़ा, जिसके कारण विश्वास मत पेश किया गया। हालांकि उनकी सरकार यह मत जीतने में सफल रही, लेकिन यह प्रक्रिया भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर गई थी। उनके दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के कई आरोप और आर्थिक मंदी जैसे मुद्दों ने उनकी सरकार की लोकप्रियता को कमजोर कर दिया।
विरासत और सम्मान
डॉ. सिंह का कार्यकाल 26 मई, 2014 को समाप्त हुआ, जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभाला। हालांकि उनके दूसरे कार्यकाल में विवाद रहे, लेकिन डॉ. सिंह को उनकी ईमानदारी, बौद्धिकता और भारत की अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
डॉ. सिंह को कई सम्मान मिले, जिनमें शामिल हैं:
- पद्म विभूषण (1987): भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान।
- एडम स्मिथ पुरस्कार (1956): कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान किया गया।
- यूरो मनी अवार्ड (1993): वित्त मंत्री के रूप में उत्कृष्ट योगदान के लिए।
- कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से मानद उपाधियां।
डॉ. मनमोहन सिंह: व्यक्तिगत जीवन
डॉ. मनमोहन सिंह की पत्नी का नाम गुरशरण कौर है, और उनकी तीन बेटियां हैं। अपनी विनम्रता और शांत स्वभाव के लिए जाने जाने वाले डॉ. सिंह को उनके अकादमिक दृष्टिकोण और देश की सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए हमेशा सराहा जाता रहा है।
निष्कर्ष
डॉ. मनमोहन सिंह की यात्रा, एक छोटे से गांव से भारत के प्रधानमंत्री बनने तक, brilliance (प्रतिभा), perseverance (दृढ़ता), और nation service (देश सेवा) का प्रतीक है। एक विद्वान, अर्थशास्त्री और नेता के रूप में उन्होंने भारत को आधुनिक आर्थिक शक्ति में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी उपलब्धियां और योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।
Share this articles