महाराष्ट्र सरकार ने ऐतिहासिक शहर खुलताबाद का नाम बदलकर उसके प्राचीन नाम रत्नपुर रखने का निर्णय लिया है। यह घोषणा राज्य के सामाजिक न्याय मंत्री संजय शिर्साट ने 8 अप्रैल, 2025 को की। यह कदम राज्य सरकार द्वारा नगरों के मूल नामों को पुनर्स्थापित करने के व्यापक अभियान का हिस्सा है।
यह निर्णय पूर्व-मुगल कालीन विरासत और पहचान को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से लिया गया है। खुलताबाद, जो अब छत्रपती संभाजीनगर जिले में स्थित है, प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ मुगल सम्राट औरंगज़ेब, उनके पुत्र आज़म शाह, और हैदराबाद निज़ाम वंश के संस्थापक आसफ जाह प्रथम की कब्रें स्थित हैं।
प्रमुख बिंदु
- आधिकारिक नाम परिवर्तन
- खुलताबाद का नाम अब रत्नपुर होगा।
- यह बदलाव राजनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि ऐतिहासिक पहचान की पुनर्स्थापना के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- इस स्थान का मूल नाम रत्नपुर था, जिसे मुगल काल के दौरान बदलकर खुलताबाद किया गया।
- यह नगर छत्रपती संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) से लगभग 25 किमी दूर स्थित है।
औरंगज़ेब की कब्र को लेकर विवाद
खुलताबाद में स्थित औरंगज़ेब की कब्र, ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसी परिसर में उसके पुत्र आज़म शाह और हैदराबाद के निज़ाम वंश के संस्थापक आसफ़ जाह प्रथम की कब्रें भी मौजूद हैं।
हाल के वर्षों में यह स्थल विवाद का विषय बना है। शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई नेताओं ने मांग की है कि इन कब्रों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारकों की सूची से हटाया जाए। उनका तर्क है कि इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व नहीं, बल्कि यह मुगल अत्याचार के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए।
प्रस्तावित विकास
- खुलताबाद में छत्रपती शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की स्मृति में स्मारक निर्माण की योजना है।
- यह कदम मराठा वीरता और विरासत को उजागर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
सांस्कृतिक और राजनीतिक संदर्भ
- यह निर्णय मुगल और औपनिवेशिक नामों को बदलने की राज्यव्यापी मुहिम का हिस्सा है।
- पहले औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपती संभाजीनगर किया गया।
- उस्मानाबाद का नाम अब धाराशिव है।
- इस पूरे प्रयास को “सांस्कृतिक पुनरुत्थान” और मराठा पहचान के पुनर्जीवन की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
- यह कदम महाराष्ट्र की ऐतिहासिक जड़ों और सांस्कृतिक विरासत को सशक्त करने की दिशा में एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।