भारत की वैश्विक बढ़त: RCEP में नई दिलचस्पी और इटली के साथ रणनीतिक गठजोड़

भारत की वैश्विक बढ़त: RCEP में नई दिलचस्पी और इटली के साथ रणनीतिक गठजोड़

RCEP (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी) के वैश्विक व्यापार पर बढ़ते प्रभाव के बीच, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देश इस संगठन में शामिल होने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। यह रुझान इस बात को दर्शाता है कि RCEP क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण और सहयोग को मजबूती देने में कितना प्रभावशाली बन चुका है।

हालाँकि भारत ने 2019 में RCEP से बाहर रहने का निर्णय लिया था, लेकिन वह वैश्विक मंच पर अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए रणनीतिक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करने की दिशा में अग्रसर है।

इसी कड़ी में, भारत और इटली ने व्यापार, रक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और उच्च तकनीक जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया है। यह सहयोग संयुक्त रणनीतिक कार्य योजना (JSAP) 2025–2029 के तहत किया जाएगा, जो दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक साझेदारी को सुदृढ़ करने का रोडमैप प्रस्तुत करता है।

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क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership – RCEP) क्या है?

  • RCEP एक महत्वपूर्ण आर्थिक समझौता है जो ASEAN (एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस) के सदस्य देशों और उनके मुक्त व्यापार समझौता (FTA) भागीदारों के बीच हुआ है।
  • RCEP दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक समूह है। इसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक एकीकरण, व्यापार उदारीकरण और सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • RCEP पर बातचीत वर्ष 2012 में शुरू हुई थी। इसे नवंबर 2020 में आधिकारिक रूप से हस्ताक्षरित किया गया, जो क्षेत्रीय व्यापार के क्षेत्र में एक बड़ा मील का पत्थर था। यह समझौता 1 जनवरी 2022 से प्रभाव में आया।
  • RCEP: एक व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता

सदस्य देश:

RCEP में कुल 15 देश शामिल हैं, जिनमें चीन, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और 10 ASEAN देश – ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।

समझौते के दायरे:

इस साझेदारी में कई प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं, जैसे वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार, निवेश, आर्थिक व तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा अधिकार, प्रतिस्पर्धा, ई-वाणिज्य, विवाद समाधान, लघु और मध्यम उद्यम (SMEs) तथा अन्य संबंधित मुद्दे।

मुख्य उद्देश्य:

इस समझौते का लक्ष्य सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को सरल बनाना है। यह शुल्कों और गैर-शुल्कीय बाधाओं को घटाकर क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करता है और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है।

प्रमुख लाभ:

RCEP से क्षेत्रीय आर्थिक विकास को गति मिलती है और स्थिरता बनी रहती है। यह व्यापार नियमों को सरल करता है, विदेशी निवेश को आकर्षित करता है और प्रतिस्पर्धा व नवाचार को प्रोत्साहित करता है।

व्यापारिक प्रभाव:

इस व्यापारिक समूह का हिस्सा बनने वाले देश वैश्विक GDP का 30% से अधिक हिस्सा रखते हैं और यह विश्व की लगभग एक-तिहाई आबादी को कवर करता है। इसका वैश्विक व्यापार पर बड़ा प्रभाव पड़ने की संभावना है।

वैश्विक व्यापार में भूमिका:

RCEP, एशिया-प्रशांत क्षेत्र की व्यापारिक स्थिति को मजबूत करता है और भविष्य के व्यापार समझौतों के लिए एक उदाहरण बन सकता है।

भारत और RCEP:

भारत इस पहल का प्रारंभिक भागीदार था, लेकिन 2019 में उसने इससे बाहर निकलने का निर्णय लिया। इसका कारण घरेलू उद्योगों पर संभावित नकारात्मक प्रभाव, खासकर चीनी वस्तुओं के बाजार में बढ़ते दबाव को लेकर चिंताएं थीं। इसके अलावा, सेवाओं में कामगारों की आवाजाही और कृषि तथा छोटे व्यवसायों से संबंधित मुद्दों पर भी असहमति रही।

 

 

 

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