भारत की स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1950 में भारत सरकार ने योजना आयोग की स्थापना की और पहली पंचवर्षीय योजना 1951 में शुरू की थी। यह प्रणाली सोवियत संघ की योजनाओं से प्रेरित थी और इसका मुख्य उद्देश्य देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को समन्वित और संगठित तरीके से बढ़ावा देना था। इस लेख में भारत के आर्थिक नियोजन व पंचवर्षीय योजना, इतिहास व उद्देश्य पर विवरण दी गई है. यह नोट्स विभिन्न प्रकार के प्रतियोगी परिक्षाओं के लिए उपयोगी साबित होंगी.
भारत में आर्थिक नियोजन
भारत में आर्थिक नियोजन का उद्देश्य संसाधनों के उचित उपयोग के माध्यम से देश की आर्थिक प्रगति सुनिश्चित करना है। इसका अभिप्राय है- “राज्य के अभिकरणों द्वारा देश की आर्थिक सम्पदा और सेवाओं की एक निश्चित अवधि हेतु आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना”.
भारत में आर्थिक नियोजन के प्रमुख उद्देश्य
भारत में आर्थिक नियोजन का उद्देश्य “आर्थिक संवृद्धि, आर्थिक व सामाजिक असमानता को दूर करना, गरीबी का निवारण तथा रोजगार के अवसर में वृद्धि” करना हैं.
- आर्थिक विकास: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाकर भारत के समग्र विकास को बढ़ावा देना।
- रोजगार सृजन: बेरोजगारी को कम करने और मानव संसाधनों के अधिकतम उपयोग पर ध्यान केंद्रित करना।
- आत्मनिर्भरता: प्रमुख उद्योगों और आवश्यक वस्तुओं में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य।
- आर्थिक स्थिरता: मुद्रास्फीति और कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करना।
- सामाजिक कल्याण: शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सेवाओं में सुधार कर नागरिकों की जीवन गुणवत्ता को बढ़ाना।
- क्षेत्रीय विकास: पिछड़े क्षेत्रों को प्रोत्साहन देकर क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना।
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य
- उच्च आर्थिक वृद्धि दर: देश के नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार करना।
- आर्थिक स्थिरता: समृद्धि के लिए स्थिर आर्थिक और वित्तीय वातावरण सुनिश्चित करना।
- आत्मनिर्भरता: आयात पर निर्भरता को कम करते हुए घरेलू उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देना।
- सामाजिक न्याय: असमानताओं को कम कर समाज के सभी वर्गों तक विकास का लाभ पहुँचाना।
- आधुनिकीकरण: कृषि, उद्योग और अन्य क्षेत्रों को आधुनिक तकनीकों से लैस करना।
पंचवर्षीय योजनाओं का इतिहास
भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना 1951-56 के दौरान लागू की गई थी, जिसमें मुख्य रूप से कृषि, सिंचाई और ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसके बाद की योजनाओं में औद्योगिक विकास, बुनियादी ढाँचे के निर्माण, और रोजगार सृजन जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया गया। 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद, पंचवर्षीय योजनाओं में सरकारी हस्तक्षेप कम हुआ और निजी क्षेत्र को अधिक भागीदारी दी गई।
योजना आयोग से नीति आयोग तक
भारत में नियोजन का एक और महत्वपूर्ण चरण तब आया जब 17 अगस्त 2014 को योजना आयोग को भंग कर दिया गया और उसकी जगह 1 जनवरी 2015 को नीति आयोग का गठन किया गया। नीति आयोग एक अधिक लचीली और परामर्शात्मक संस्था है, जो विभिन्न राज्य सरकारों, विशेषज्ञों, और थिंक टैंकों के सहयोग से राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर योजनाओं को लागू करने पर काम करती है।
प्रारंभिक विकास और पंचवर्षीय योजना की शुरुआत
1944 में ‘बॉम्बे प्लान‘ का निर्माण भारतीय उद्योगपतियों के एक समूह द्वारा किया गया था. इस प्लान में योजनाबद्ध आर्थिक विकास का खाका तैयार किया गया था। स्वतंत्रता के बाद इस विचारधारा को ज्यादा मजबूती मिली और आगे चल कर 1950 में योजना आयोग की स्थापना हुई। सर एम. विश्वेश्वरैया को भारतीय आर्थिक नियोजन के जनक के रूप में जाना जाता हैं, क्योंकि वे भारत के विकास के लिए केंद्रीकृतव वैज्ञानिक नियोजन के विचार को आगे बढ़ाया था।
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)
प्रथम पंचवर्षीय योजना का मुख्य फोकस कृषि और सिंचाई था। यह योजना हैराल्ड-डोमर मॉडल पर आधारित हैं, इसका मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास की प्रक्रिया आरम्भ करना था. हरित क्रांति के आने से पहले ही भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने के प्रयास प्रारंभ हो गए थे। इस योजना की सफलता का प्रमुख कारण भाखड़ा नांगल, दामोदर नदी घाटी तथा हीराकुंड नदी घाटी परियोजनाएं का निर्माण किया गया था। इसके अंतर्गत भारत में प्रमुख प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) स्थापित किए गए थे। यह पंचवर्षीय योजना अपने लक्ष्य (2.1%) से अधिक विकास दर (3.6%) प्राप्त किया था.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61)
यह योजना भारत के औद्योगीकरण की नींव मानी जाती है। यह योजना पी.सी. महालनोबिस द्वारा तैयार की गई थी. इस योजना ने भारी उद्योगों और सार्वजनिक क्षेत्र के विकास पर बल दिया। इस योजना में राउरकेला, भिलाई, एवं दुर्गापुर संयत्रों की स्थापना हुई थी. इसने भारत में आर्थिक विकास की संरचना को गहरे स्तर पर प्रभावित किया, जिससे देश की औद्योगिक प्रगति हुई। इस योजना में 25% की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था.
तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-66)
यह योजना जॉन सेंडी तथा सुखमय चक्रवर्ती मॉडल पर आधारित थी. इस योजना ने कृषि और औद्योगिक उत्पादन दोनों पर ध्यान केंद्रित किया। इस दौरान भारत को भारत-चीन युद्ध (1962) और भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965) जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। योजना अवकाश के दौरान कृषि के क्षेत्र में सुधार की दिशा में कार्य किया गया, जिसके फलस्वरूप हरित क्रांति को बढ़ावा मिला।
योजना अवकाश और अन्य चुनौतियाँ:
1966-69 के बीच ‘योजना अवकाश‘ के दौर में तीन वार्षिक योजनाएँ बनाई गईं, जो भारत के आर्थिक सुधार के लिए जरूरी थीं। इस दौरान कृषि और उद्योगों को समान महत्व दिया गया, जिससे संसाधनों की कमी और युद्ध के प्रभावों को सुलझाने में मदद मिली। इस दौरान 1966-67 में हरित क्रांति की शुरूवात हुई थी.
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74)
यह योजना गाडगिल योजना के नाम से जाना जाता हैं एवं यह योजना एलन एस मात्रे तथा अशोक रूद्र मॉडल पर आधारित थी. इस योजना ने स्थिरता और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान यह योजना विशेष रूप से बैंकों के राष्ट्रीयकरण और हरित क्रांति जैसी नीतियों के माध्यम से भारत के आर्थिक ढांचे को बदलने में सहायक रही। इसके साथ ही साथ यह योजना लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रही थी इसका मुख्य कारण मौसम की प्रतिकूलता तथा बंगलादेशी शरणार्थियों का आगमन था.
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-78)
यह योजना अभिगम प्रारूप मॉडल पर आधारित था. गरीबी उन्मूलन और रोजगार सृजन पर आधारित इस योजना में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (Minimum Needs Programme), काम के बदले अनाज कार्यक्रम और 20 सूत्री कार्यक्रम शुरू किए गए। बिजली आपूर्ति और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के साथ इस योजना ने कई सकारात्मक कदम उठाए। इस योजना में पहली बार गरीबी एवं बेरोजगारी पर ध्यान केन्द्रित किया गया था. इस योजना को 1978 में जनता सरकार की सत्ता में आने के बाद समय पूर्व बंद कर दिया था. इसके बाद 1978-80 में अनवरत योजना (ROLLING PLAN) लाया गया था.
अनवरत योजना (ROLLING PLAN) के प्रणेता प्रो. रागनर क्रिस थे एवं इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय डॉ. गुन्नार मिर्दल को हैं. इस अनवरत योजना का अभिप्राय यह है की विकास सम्बन्धी लक्ष्यों एवं प्राप्त उपलब्धियों का योजना के निर्धारित काल के पूरा होने के बाद मूल्यांकन न करके प्रत्येक वार्षिक योजना के अंत में मूल्यांकन करना हैं.
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)
इस योजना ने आर्थिक उदारीकरण और निजीकरण की दिशा में एक अहम कदम बढ़ाया। इसके तहत नाबार्ड की स्थापना और परिवार नियोजन के कार्यक्रमों की शुरुआत की गई। यह योजना संरचनात्मक परिवर्तन तथा वृद्धि उन्मुख मॉडल पर आधारित था.
इस योजना के समय खण्ड में विभिन्न प्रकार की योजनाएँ भी चलायी गई थी. जिनमे मुख्य हैं-
- समायित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (Integrated Rural Development Programme)- 1978-79
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP)- 1980
- ट्राइसेम (TRYSEM)-1979
- डवाकरा (DWCRA)-1982
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90)
राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान प्रस्तुत इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रौद्योगिकी के उपयोग से औद्योगिक उत्पादन में सुधार करना था। इसमें आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग, रोजगार सृजन, और आर्थिक उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास किए गए। योजनावधि में अर्थव्यवस्था रिकार्ड 6 प्रतिशत के स्तर तक बढ़ी, एवं इस योजना के दौर में उदारीकरण और निजीकरण की शुरूआत हुई थी.
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97)
यह योजना w. मिलर मॉडल पर आधारित था. इस योजना का मुख्य उद्देश्य मानव संसाधन का विकास था. यह योजना भारत के उदारीकरण और वैश्वीकरण के संदर्भ में महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दौरान भारत ने WTO की सदस्यता प्राप्त की और आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ा।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002)
इस योजना का उद्देश्य गरीबी उन्मूलन और सामाजिक विकास था। यह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान बनाई गई थी। यह योजना आगत निर्गत मॉडल पर आधारित था.
दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07)
इस योजना में प्रति वर्ष 8% GDP वृद्धि का लक्ष्य रखा गया। इसका मुख्य उद्देश्य गरीबी को 26% से घटा कर 21% तक कम करना और रोजगार सृजन था।
ग्यारहवीं और बारहवीं पंचवर्षीय योजना
ग्यारहवीं योजना (2007-12) और बारहवीं योजना (2012-17) ने समावेशी विकास पर जोर दिया। ग्यारहवीं योजना के दौरान शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया गया, जबकि बारहवीं योजना ने पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक विकास के संतुलन पर जोर दिया।
योजना आयोग का समापन और नीति आयोग की स्थापना
वर्ष 2015 में योजना आयोग को समाप्त कर उसकी जगह नीति आयोग की स्थापना की गई, जो दीर्घकालिक योजनाओं के लिए तीन मुख्य दस्तावेज़ – 3 वर्षीय एक्शन एजेंडा, 7 वर्षीय मध्यम अवधि की रणनीति और 15 वर्षीय विज़न डॉक्यूमेंट पर काम करता है।
निष्कर्ष
भारत में आर्थिक नियोजन ने पिछले सात दशकों में राष्ट्र की आर्थिक संरचना और विकास को दिशा दी है। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से सरकार ने कृषि, उद्योग, बुनियादी ढांचे और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्रों में संतुलित विकास सुनिश्चित करने के प्रयास किए हैं। नीति आयोग के गठन के बाद, योजनाबद्ध विकास की दिशा और प्रक्रिया में परिवर्तन हुआ है, जहाँ अब आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण और सामाजिक समरसता पर भी जोर दिया जा रहा है।