बारडोली सत्याग्रह

 बारडोली सत्याग्रह एवं सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान

बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक था, जो 1928 में गुजरात के सूरत जिले के बारडोली तालुका में हुआ था। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानों पर लगाए गए अत्यधिक करों के विरोध में शुरू किया गया था। सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस सत्याग्रह का नेतृत्व किया जो आगे चलकर उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दिलाने का कारण बना। इस लेख में बारडोली सत्याग्रह एवं सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान के बारें तथ्य प्रदान की गई है.

बारडोली सत्याग्रह की पृष्ठभूमि

जनवरी 1926 में गुजरात के सूरत जिले के बारडोली तालुके में स्थानोय प्रशासन ने भू-राजस्व का दर 30 प्रतिशत तक भूमि कर बढ़ा दिया था, जो किसानों के लिए असहनीय था। इस भारी कर वृद्धि के चलते किसानों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। जब किसानों ने यह कर देने से इनकार कर दिया, तो ब्रिटिश सरकार ने उनकी भूमि और संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया। इस अन्याय के खिलाफ बारडोली के किसानों ने संगठित होकर आंदोलन का फैसला किया।

सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका

सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और किसानों को संगठित कर  उन्हें सत्याग्रह और अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया। आंदोलन को सफल बनाने के लिए बारडोली सत्याग्रह पत्रिका नामक प्रकाशन का उपयोग किया गया, जिससे आंदोलन के लिए जन समर्थन बढ़ा।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने ग्रामीणों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध खड़ा किया। इस सत्याग्रह में बारडोली की महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने फरवरी 1926 में वल्लभभाई पटेल को “सरदार” की उपाधि से सम्मानित किया।

बारडोली सत्याग्रह की रणनीति और समाधान

सरदार पटेल के नेतृत्त्व में किसानों ने बढ़ी हुईदरों पर भू-राजस्व देने से मना कर दिया तथा किसानों ने एकजुट होकर निर्णय लिया कि जब तक सरकार द्वारा एक स्वतंत्र जांच समिति नियुक्त नहीं की जाती, तब तक वे कर का भुगतान नहीं करेंगे। आंदोलन को बनाए रखने के लिए बारडोली में 13 श्रमिक शिविर (छावनी) स्थापित किए गए, जो किसानों को संगठित रखने में मददगार साबित हुए।

जो लोग आंदोलन का विरोध करते थे, उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया। के. एम. मुंशी तथा लालजी नारंगी ने सत्याग्रह के समर्थन में बम्बई विधान परिषद् से त्यागपत्र दे दिया. वर्ष अगस्त 1928 तक पुरे क्षेत्र में आन्दोलन का ज्यादा व्यापक हो गया था पुरे बम्बई में रेलवे हड़ताल का आयोजन किया गया. इस आंदोलन के चलते ब्रिटिश सरकार को किसानों की मांगों के आगे झुकना पड़ा और अंततः एक जांच समिति का गठन किया गया।

बारडोली जांच समिति और परिणाम

सरकार ने जांच के लिए ब्लूमफील्ड और मैक्सवेल समिति का गठन किया एवं इस समिति ने पाया कि 30% कर वृद्धि अनुचित थी.  ब्लूमफील्ड और मैक्सवेल समिति की सिफारिश पर सरकार ने कर की दर को 30% से घटाकर 6.03% कर दिया। इस प्रकार आंदोलन अपने उद्देश्य में सफल रहा और किसानों को राहत मिली। यह आंदोलन इतना सफल रहा कि महात्मा गांधी को भी बारडोली आने के लिए प्रेरित किया और इसने पूरे भारत में स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी।

बारडोली सत्याग्रह का महत्व

बारडोली सत्याग्रह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। यह आंदोलन तब हुआ जब असहयोग आंदोलन के विफल होने के बाद राष्ट्रीय आंदोलन एक ठहराव पर था। बारडोली सत्याग्रह की सफलता ने सरदार वल्लभभाई पटेल को एक प्रमुख राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया और गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन की शक्ति को पुनः सुदृढ़ किया। वर्ष 1930 में इस आंदोलन की सफलता से प्रेरित होकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की जो आगे चलकर नमक सत्याग्रह का कारण बनी।

बारडोली सत्याग्रह का आलोचना

हालांकि बारडोली सत्याग्रह सफल रहा लेकिन इसकी कुछ आलोचनाएँ भी की गईं। इस आंदोलन में किसानों की बुनियादी समस्याओं, जैसे हाली प्रथा (किसानों से शोषणकारी श्रम व्यवस्था), पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। इसके अलावा यह आंदोलन मुख्यतः धनी और मध्यम वर्ग के किसानों को लाभान्वित करने वाला माना गया जबकि गरीब किसानों की समस्याएँ बड़े पैमाने पर उपेक्षित रहीं।

निष्कर्ष

बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इसने न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ किसानों के साहसिक प्रतिरोध को दर्शाया, बल्कि गांधीवादी सिद्धांतों की प्रभावशीलता को भी सिद्ध किया। सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में इस आंदोलन ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को नई गति दी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *