
बिहार की ऐतिहासिक विरासतों में “बेतिया राज” का स्थान विशिष्ट है। मुगल काल से लेकर ब्रिटिश शासन और अब आधुनिक भारत तक इसकी संपत्ति, राजनीति और सामाजिक संरचना लगातार चर्चा का विषय रही है। हाल ही में बिहार सरकार द्वारा “वेस्टिंग ऑफ बेतिया राज प्रॉपर्टीज एक्ट, 2024” लागू कर उत्तर प्रदेश में फैली बेतिया राज की संपत्तियों की पहचान और पुनः अधिग्रहण की प्रक्रिया ने इसे फिर से सुर्खियों में ला दिया है।
बेतिया राज का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बेतिया राज की स्थापना मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल (1579 ईस्वी) में हुई थी। उस समय बंगाल, बिहार और उड़ीसा में विद्रोह भड़क उठा था, जिसमें अफगान पठानों और बंजारों ने भी हिस्सा लिया था। अकबर ने इस विद्रोह को दबाने का कार्य अपने योग्य सेनापति उदय करण सिंह को सौंपा। उदय करण सिंह ने विद्रोह को कुचलकर क्षेत्र में शांति स्थापित की, जिससे प्रसन्न होकर अकबर ने उन्हें चंपारण का शासक नियुक्त कर दिया। यहीं से बेतिया राज की नींव रखी गई।
उदय करण सिंह के बाद उनके पुत्र जदु सिंह और फिर उनके पुत्र उग्रसेन सिंह ने शासन किया। 1629 ईस्वी में मुगल सम्राट शाहजहां ने उग्रसेन सिंह(जैठरिया वंश) को ‘राजा’ की उपाधि से सम्मानित किया, जिससे बेतिया राज को आधिकारिक मान्यता मिली।
इसके बाद गज सिंह और दिलीप सिंह ने शासन किया। दिलीप सिंह की मृत्यु के बाद ध्रुव सिंह राजा बने, जिन्हें बेतिया राज का सबसे सफल और लोकप्रिय शासक माना जाता है। उन्होंने राजधानी को सुगांव से बेतिया स्थानांतरित किया, जिससे बेतिया शहर का महत्व काफी बढ़ गया।
ध्रुव सिंह की कोई संतान नहीं थी, केवल दो बेटियाँ थीं। उन्होंने अपने नाती युगलकिशोर सिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया ताकि राज्य बाहरी हाथों में न जाए, लेकिन इसी के साथ पारिवारिक कलह की शुरुआत भी हुई। 1762 में ध्रुव सिंह की मृत्यु के बाद युगलकिशोर सिंह राजा बने, लेकिन उन्हें अपने नाना के भाइयों और ईस्ट इंडिया कंपनी दोनों से चुनौती मिली। उन्होंने 1766 में कंपनी के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, लेकिन कर्नल बार्कर के नेतृत्व में अंग्रेजों ने बेतिया पर कब्जा कर लिया और युगलकिशोर को भागना पड़ा। बाद में उन्होंने 1771 में पटना राजस्व परिषद के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और मझौआ व सिमरौन परगनों को लेकर एक समझौता हुआ।
1784 में युगलकिशोर की मृत्यु के बाद उनके पुत्र बृजकिशोर सिंह ने राज संभाला। 1816 में उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र आनंद किशोर सिंह राजा बने और उन्हें ‘महाराजा’ की उपाधि प्राप्त हुई। वे कला और संगीत के संरक्षक थे और उनके समय में ध्रुपद गायन को विशेष प्रोत्साहन मिला।
1838 में आनंद किशोर सिंह की मृत्यु के बाद उनके भाई नवल किशोर सिंह राजा बने। उन्होंने बेतिया राज का विस्तार किया और विकास कार्य किए। 1855 में उनके निधन के बाद उनके पुत्र राजेंद्र किशोर सिंह ने गद्दी संभाली। उनके शासन में बेतिया में रेलवे लाइन बिछी, तारघर बना और आधुनिक सुविधाओं का विकास हुआ।
राजेंद्र किशोर सिंह की मृत्यु 1883 में हुई। इसके बाद महाराजा हरेंद्र किशोर सिंह अंतिम शासक बने। 1893 में उनकी मृत्यु के साथ ही बेतिया राज का राजनीतिक अस्तित्व समाप्त हो गया। चूंकि वे संतानहीन थे, इसलिए ब्रिटिश सरकार ने बेतिया राज की संपत्ति की बिक्री पर रोक लगा दी। उनकी दूसरी पत्नी 1954 तक जीवित रहीं, और उसके बाद बेतिया राज पूरी तरह समाप्त हो गया।
आधुनिक पुनरुद्धार: 2024 की पहल
नवंबर 2024 में बिहार सरकार ने बेतिया राज की ऐतिहासिक संपत्तियों के पुनः अधिग्रहण की दिशा में ठोस कदम उठाया। इसके लिए एक विशेष कानून — “वेस्टिंग ऑफ बेतिया राज प्रॉपर्टीज एक्ट, 2024” — पारित किया गया।
उत्तर प्रदेश में सर्वेक्षण अभियान
बिहार राजस्व विभाग की टीमें उत्तर प्रदेश के 8 जिलों – गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, अयोध्या, बस्ती, प्रयागराज, वाराणसी और मिर्जापुर – में बेतिया राज की संपत्तियों की पहचान कर रही हैं। सर्वेक्षण की प्रक्रिया में ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से मिलान, भूमि की माप, कब्जाधारियों को नोटिस और अवैध कब्जे हटाने की कार्रवाई शामिल है।
अब तक की प्रमुख उपलब्धियाँ
- गोरखपुर में 175.53 एकड़ भूमि की पहचान।
- 9 सरकारी भवन बेतिया राज की ज़मीन पर पाए गए।
- एक बैंक लॉकर और कई कॉलोनियाँ भी बेतिया संपत्ति में शामिल।
- कई परिवारों को कब्जा हटाने हेतु नोटिस जारी।
प्रमुख चुनौतियाँ
स्थानीय विरोध: वर्षों से रह रहे लोगों को हटाने में सामाजिक टकराव।
कानूनी विवाद: कई व्यक्तियों द्वारा रजिस्ट्री वैध होने का दावा।
सहयोग की जरूरत: उत्तर प्रदेश प्रशासन की साझेदारी जरूरी।
महत्वपूर्ण प्रशासनिक पहल
- बिहार सरकार ने गोरखपुर SDM कोर्ट में मुकदमा भी दायर किया।
- उत्तर प्रदेश के जिलाधिकारियों को रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं।
- यह पहल भारत में भूमि पुनः अधिग्रहण का उदाहरण बन रही है।
निष्कर्ष
बेतिया राज की यह ऐतिहासिक गाथा एक ओर जहां वीरता, कलात्मकता और संघर्ष का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर आधुनिक शासन व्यवस्था में भूमि के पुनः स्वामित्व और न्यायिक व्यवस्था के समन्वय का उदाहरण है। बिहार सरकार की यह पहल न केवल ऐतिहासिक न्याय की दिशा में कदम है, बल्कि संपत्ति प्रबंधन की पारदर्शिता को भी सुदृढ़ करती है।
अतिरिक्त संभावित बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1.बेतिया राज की स्थापना किस मुगल सम्राट के शासनकाल में हुई थी?
a) बाबर
b) औरंगजेब
c) अकबर
d) शाहजहां
2.बेतिया राज के पहले संस्थापक कौन थे?
a) ध्रुव सिंह
b) उदय करण सिंह
c) युगलकिशोर सिंह
d) आनंद किशोर सिंह
3.राजा ध्रुव सिंह ने राजधानी किस स्थान से स्थानांतरित करके बेतिया को राजधानी बनाया?
a) पटना
b) सुगांव
c) मोतिहारी
d) हजारीबाग
4.1766 में किस अंग्रेज अधिकारी ने बेतिया पर कब्जा किया था?
a) कर्नल क्लाइव
b) लॉर्ड वेलेजली
c) कर्नल बार्कर
d) कर्नल मुनरो
5.बेतिया राज की संपत्तियाँ किस वर्ष Court of Wards के अधीन कर दी गई थीं?
a) 1893
b) 1897
c) 1901
d) 1920
6.महाराजा आनंद किशोर सिंह को किस प्रकार की कला में विशेष रुचि थी?
a) चित्रकला
b) लोकनाट्य
c) ध्रुपद संगीत
d) मूर्तिकला
7.2024 के अधिनियम के अनुसार बेतिया राज की संपत्तियों की पहचान किन दो प्रकार के दस्तावेजों के मिलान से की जा रही है?
a) भू-स्वामित्व और राशन कार्ड
b) पंजीकरण और जनसंख्या रजिस्टर
c) ऐतिहासिक राजस्व रिकॉर्ड और वर्तमान भूमि अभिलेख
d) पंचायत रजिस्टर और आधार कार्ड
8.बिहार सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में बेतिया राज की संपत्तियों की पहचान के लिए कितने जिलों को चिह्नित किया गया है?
a) 5
b) 6
c) 8
d) 10
9.बेतिया राज की संपत्तियों की सुरक्षा और अधिग्रहण हेतु बनाए गए 2024 के अधिनियम का नाम क्या है?
a) बेतिया अधिनियम, 2024
b) सम्पत्ति पुनर्वास अधिनियम, 2024
c) वेस्टिंग ऑफ बेतिया राज प्रॉपर्टीज एक्ट, 2024
d) संपत्ति अधिग्रहण अधिनियम, 2024
10.बिहार सरकार ने 2024 में सर्वेक्षण के लिए किन अधिकारियों की टीम गठित की है?
a) पंचायत एवं शिक्षा विभाग के अधिकारी
b) IAS और IPS अधिकारियों की विशेष टीम
c) राजस्व अधिकारी, लेखपाल, अभियंता व सुरक्षा गार्ड
d) सिर्फ बिहार पुलिस बल
11.बेतिया राज से संबंधित कौन-सा जिला वर्तमान में इसकी राजधानी के रूप में जाना जाता है?
a) पूर्वी चंपारण
b) पश्चिम चंपारण
c) सीवान
d) गोपालगंज