
भारत सरकार ने देश की 16वीं जनगणना (Census 2027) की तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया है। इस बार की जनगणना ऐतिहासिक होगी, क्योंकि आज़ादी के बाद यह पहली बार होगा जब जनगणना और जातीय गणना एक साथ की जाएगी। सरकार का लक्ष्य है कि यह पूरी प्रक्रिया मार्च 2027 तक पूर्ण कर ली जाए।
जनगणना 2027 (Census 2027): दो चरणों में होगी जनगणना
जनगणना प्रक्रिया को दो चरणों में विभाजित किया गया है। पहला चरण 2026 के अंत तक और दूसरा चरण मार्च 2027 तक पूरा कर लिया जाएगा। इस प्रक्रिया के दौरान नागरिकों के जनसांख्यिकीय, सामाजिक और आर्थिक आंकड़े एकत्र किए जाएंगे।
जनगणना दो चरणों में पूरी होगी
- पहला चरण: अक्टूबर 2026 से कुछ राज्यों में
- दूसरा चरण: देशभर में 1 मार्च 2027 से
- अधिसूचना: 16 जून 2025 को जारी होने की संभावना
- समाप्ति समय: मार्च 2027 तक प्रक्रिया पूरी करने का लक्ष्य
सरकार द्वारा 16 जून 2025 को अधिसूचना जारी की जाएगी, जिसके बाद तीन वर्षों में प्रक्रिया पूरी होने की संभावना है।
पहली बार डिजिटल माध्यम से जनगणना (Census)
इस बार जनगणना प्रक्रिया पूरी तरह डिजिटल पद्धति से की जाएगी। आंकड़े मोबाइल, टैबलेट आदि डिवाइसों में सीधे दर्ज किए जाएंगे, जिससे समय और संसाधनों की बचत होगी।
- 574.80 करोड़ रुपये के बजट की स्वीकृति।
- 13 हजार करोड़ रुपये तक का कुल खर्च अनुमानित।
डिजिटल माध्यम से नागरिक अपने आंकड़े स्वयं दर्ज कर सकेंगे।
डिजिटल जनगणना के फायदे:
- मोबाइल टैबलेट से डेटा कलेक्शन
- नागरिक स्वयं भी डिजिटल रूप से फॉर्म भर सकेंगे
- समय और संसाधनों की बचत
- रीयल टाइम मॉनिटरिंग संभव होगी
ओबीसी की संख्या का मिलेगा सटीक आंकड़ा
जातीय गणना के माध्यम से देश में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की जनसंख्या का सटीक आंकड़ा सामने आ सकेगा। पिछली बार 1931 में ब्रिटिश सरकार ने जातीय आधार पर गणना कराई थी। हालांकि, 2011 में सामाजिक-आर्थिक जनगणना में जातियों का कुछ आकलन हुआ था, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया गया था।
2026 से शुरू होगी प्रक्रिया, चार राज्यों में अक्टूबर 2026 से
पहले चरण में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में अक्टूबर 2026 से गणना की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अन्य राज्यों में एक मार्च 2027 से जातीय गणना होगी।
आज़ादी के बाद पहली बार होगी जातीय गणना (Caste Census in India 2027)
देश के इतिहास में आज़ादी के बाद यह पहली बार होगा जब राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित गणना (Caste Census) कराई जाएगी। यह निर्णय सरकार ने सामाजिक न्याय, नीति निर्धारण और योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने के उद्देश्य से लिया है।
जातीय गणना से:
- जातियों की वास्तविक संख्या का पता चलेगा।
- कल्याणकारी योजनाओं की पहुँच को बेहतर बनाया जा सकेगा।
- आरक्षण नीति को वैज्ञानिक आधार मिल सकेगा।
33 किस्म के आंकड़े एकत्र किए जाएंगे
जनगणना के दौरान 33 श्रेणियों में आंकड़े एकत्र किए जाएंगे, जिनमें जाति, धर्म, शिक्षा, आर्थिक स्थिति, आवासीय स्थिति, जन्म और मृत्यु दर आदि शामिल होंगे।
2011 और 2021 में क्या हुआ?
- 2011: सामाजिक-आर्थिक जनगणना हुई थी, लेकिन ओबीसी की जातिवार सूची सार्वजनिक नहीं की गई थी।
- 2021: कोविड महामारी के कारण जनगणना की प्रक्रिया स्थगित कर दी गई थी। अब यह 2027 में पूरी होगी।
जातियों का बड़ा आंकड़ा आ सकता है सामने
विशेषज्ञों का मानना है कि इस जातीय गणना से 52 से अधिक जातियों की उपस्थिति और संख्या का सटीक अनुमान लग सकेगा। 2011 में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 4.6 लाख जातियां/उपजातियां थीं, जबकि अनुसूचित जातियों और जनजातियों की कुल संख्या केवल 1,200 के आसपास थी। यह असंतुलन सरकार के लिए जातीय गणना को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लागू करने का संकेत देता है।
निष्कर्ष
जनगणना 2027 सिर्फ जनसंख्या का ही नहीं, बल्कि समाज की संरचना, वर्गीकरण और विकास की दिशा तय करने वाला दस्तावेज बनेगा। डिजिटल माध्यम, जातीय विश्लेषण और दो चरणों की प्रक्रिया के माध्यम से यह भारत की सबसे सटीक और व्यापक जनगणना बनने जा रही है।
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