
चर्चा में क्यों?-वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) की ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2025(Global Wind Report 2025)) के अनुसार, मौजूदा प्रगति के आधार पर वर्ष 2030 तक केवल 77% अनुमानित पवन क्षमता ही स्थापित हो सकेगी। इससे वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C (अधिमानतः 1.5°C) से नीचे सीमित रखने की पेरिस समझौते और नेट-जीरो लक्ष्यों की प्राप्ति संकट में पड़ सकती है।
ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2025 के प्रमुख निष्कर्ष
वैश्विक क्षमता में वृद्धि:
- 2024 में कुल 117 गीगावाट (GW) नई पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई, जो 2023 के 116.6 GW से थोड़ी अधिक है। इससे कुल वैश्विक पवन ऊर्जा क्षमता बढ़कर 1,136 GW हो गई।
शीर्ष योगदानकर्ता:
- चीन ने अकेले 70% नई क्षमता जोड़कर बाज़ार में नेतृत्व किया। अन्य शीर्ष देश: अमेरिका, ब्राज़ील, भारत और जर्मनी।
उदीयमान क्षेत्र:
- मिस्र, सऊदी अरब और उज्बेकिस्तान जैसे देशों के नेतृत्व में अफ्रीका और मध्य पूर्व में तटीय पवन ऊर्जा क्षमता दोगुनी हुई।
अपतटीय क्षेत्र में गिरावट:
- 2024 में वैश्विक स्तर पर केवल 8 GW अपतटीय (offshore) पवन क्षमता जोड़ी गई — यह 2023 की तुलना में 26% कम है।
वैश्विक चुनौतियाँ
- नीतिगत अनिश्चितता: प्रमुख देशों में अप्रत्याशित नीतियाँ और अनुमतियों में देरी।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: ग्रिड उन्नयन और ट्रांसमिशन नेटवर्क में निवेश अपर्याप्त।
- वित्तीय दबाव: उच्च ब्याज दरें, मुद्रास्फीति, संरक्षणवाद और अक्षय ऊर्जा की अप्रभावी नीलामी प्रणाली।
- COP28 प्रतिबद्धता: 2030 तक हर वर्ष 320 GW की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ना अनिवार्य — नहीं तो 1.5°C लक्ष्य अधर में पड़ सकता है।
भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति
संस्थापित क्षमता: मार्च 2025 तक भारत में 50.04 GW पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित हो चुकी है।
वार्षिक वृद्धि: 2024–25 में 4.15 GW, जो पिछले वर्ष से अधिक है।
वैश्विक रैंक: भारत चौथे स्थान पर है — चीन, अमेरिका, जर्मनी के बाद।
प्रमुख राज्य: गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु शीर्ष उत्पादक राज्य हैं।
घरेलू विनिर्माण क्षमता: भारत 18,000 MW प्रति वर्ष पवन टरबाइनों का उत्पादन कर सकता है।
अपतटीय क्षमता: गुजरात और तमिलनाडु की संयुक्त अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता लगभग 71 GW आँकी गई है।
भारत की प्रमुख चुनौतियाँ
- भूमि अधिग्रहण में जटिलताएँ:विशाल टरबाइनों हेतु प्रति इकाई 7-8 एकड़ भूमि आवश्यक — भूमि उपयोग परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी।
- ग्रिड अवसंरचना की कमी:राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में पर्याप्त ट्रांसमिशन लाइनें नहीं, जिससे लागत बढ़ती है।
- नीतिगत असंगतता:प्रोत्साहन योजनाओं की समाप्ति, राज्यों की भिन्न टैरिफ नीतियाँ और अनुमोदन प्रक्रियाओं में अंतर।
- वित्तीय बाधाएँ:उच्च प्रारंभिक लागत और छोटे डेवलपर्स के लिए पूंजी जुटाना कठिन।
- आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता:ब्लेड और अन्य घटकों के लिए चीन पर अत्यधिक निर्भरता — साइबर सुरक्षा और स्थायित्व पर प्रश्न।
- ई-कचरा संकट:पुराने पवन टरबाइनों के पुनर्चक्रण में कठिनाई, विशेषकर मिश्रित सामग्री के ब्लेड के कारण।
भारत में पवन ऊर्जा को सशक्त बनाने के उपाय
नीतिगत सुधार:भूमि अधिग्रहण सरल बनाया जाए, एक समान राष्ट्रीय पवन नीति लागू की जाए, और पुराने पवन फार्मों का repowering किया जाए।
भूमि बैंक की स्थापना:पूर्व-चिह्नित, विवाद-मुक्त ज़मीन निवेशकों के लिए भरोसेमंद विकल्प प्रदान कर सकती है।
अपतटीय सहयोग:डेनमार्क और यूके जैसे देशों के साथ तकनीकी साझेदारी से अपतटीय पवन ऊर्जा को गति दी जा सकती है।
हाइब्रिड प्रोजेक्ट्स:सौर-पवन संयोजन से भूमि का बेहतर उपयोग और स्थिर उत्पादन सुनिश्चित होता है।
वित्तीय नवाचार:ग्रीन बॉन्ड्स, कार्बन क्रेडिट और पीएलआई (PLI) योजनाओं से घरेलू निर्माण को बल।
कौशल विकास:अपतटीय व संचालन एवं रखरखाव (O&M) के लिए मानव संसाधन प्रशिक्षण आवश्यक।
नई तकनीकें:फ्लोटिंग विंड टरबाइन, ग्रीन हाइड्रोजन और हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलिसिस जैसे नवाचारों में निवेश आवश्यक।
भारत का पवन ऊर्जा क्षेत्र तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन स्थायी प्रगति के लिए भूमि, ग्रिड, नीति, वित्त और तकनीक से जुड़ी चुनौतियों पर संगठित प्रयास आवश्यक हैं। यदि भारत अपतटीय क्षमता, स्थानीय निर्माण, हाइब्रिड मॉडल, और नवाचारों पर ध्यान केंद्रित करे, तो वह अपने नेट-जीरो और ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों को समयबद्ध तरीके से हासिल कर सकता है।
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