
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी संकट में: एक ऐतिहासिक झटका
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) — जिसे दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली शैक्षणिक संस्थानों में गिना जाता है — आज अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही है। अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (DHS) ने अचानक हार्वर्ड की SEVIS प्रमाणन (Student and Exchange Visitor Information System) सर्टिफिकेशन रद्द कर दी है, जिससे विश्वविद्यालय अब अंतरराष्ट्रीय छात्रों को वैध रूप से दाख़िला नहीं दे सकता।
इस फैसले का असर 7,000 से अधिक विदेशी छात्रों पर पड़ रहा है, जिनमें भारत, चीन, कनाडा, ब्रिटेन और दक्षिण कोरिया के छात्र प्रमुख रूप से शामिल हैं।
Harvard University: SEVIS प्रमाणन क्यों रद्द हुआ?
DHS के मुताबिक, हार्वर्ड पर निम्नलिखित आरोप लगाए गए हैं:
- यहूदी छात्रों के लिए “असुरक्षित और शत्रुतापूर्ण माहौल” बनाना।
- प्रो-हमास और अमेरिका विरोधी विचारधारा को समर्थन देना।
- कैंपस में विरोध प्रदर्शन और DEI (Diversity, Equity, Inclusion) नीतियों के माध्यम से कानून व्यवस्था को चुनौती देना।
होमलैंड सिक्योरिटी सेक्रेटरी क्रिस्टी नोएम ने हार्वर्ड को 72 घंटे के भीतर छात्रों की अनुशासनात्मक रिपोर्ट, प्रदर्शन की फुटेज और अन्य संवेदनशील डाटा सौंपने का आदेश दिया है। यदि विश्वविद्यालय सहयोग नहीं करता, तो यह प्रतिबंध स्थायी हो सकता है।
छात्रों का भविष्य अधर में
जो छात्र अभी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके हैं, उन्हें डिग्री दी जाएगी। लेकिन बाकी छात्रों के लिए अब दो ही रास्ते हैं:
- किसी और SEVP-प्रमाणित संस्थान में स्थानांतरण करें
- या अमेरिका में अपनी वैध स्थिति गंवा बैठें, यानी उन्हें देश छोड़ना पड़ सकता है।
- यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है:
- अधिकांश विश्वविद्यालयों की एडमिशन डेडलाइन निकल चुकी है।
- हार्वर्ड अब SEVIS तक पहुंच नहीं रखता, जिससे छात्रों को जरूरी वीजा दस्तावेज (I-20) नहीं मिल पा रहे हैं।
- छात्र अमेरिका छोड़ कर फिर से दाख़िला लेना चाहें, तो भी उनका स्टेटस स्पष्ट नहीं है।
क्या वीजा अभी भी मान्य है?
- तकनीकी रूप से छात्रों का वीजा रद्द नहीं किया गया है, लेकिन:
- हार्वर्ड अब छात्रों के फुल-टाइम नामांकन की पुष्टि नहीं कर सकता, जो वीजा की वैधता के लिए अनिवार्य है।
- इसका मतलब है कि छात्रों के पास वीजा है, लेकिन वैध प्रायोजक नहीं।
यह टकराव कब शुरू हुआ?
यह कदम ट्रंप प्रशासन और विश्वविद्यालयों के बीच जारी वैचारिक टकराव का परिणाम है। खासकर:
- गाजा युद्ध पर छात्रों के प्रदर्शन,
- DEI नीतियों को बनाए रखने का हार्वर्ड का रुख,
- और प्रशासन के आदेशों की खुलेआम अनदेखी।
हार्वर्ड ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि शैक्षणिक स्वतंत्रता, विचारों की अभिव्यक्ति और विविधता का समर्थन उसके मूल मूल्यों में से हैं।
भारत के लिए सबक
यह प्रकरण न केवल अमेरिका की शिक्षा नीति पर सवाल उठाता है, बल्कि भारत जैसे देशों के छात्रों के लिए एक चेतावनी भी है:
- विदेश में पढ़ाई के लिए वैचारिक और राजनीतिक वातावरण को समझना जरूरी है।
- एक ही विश्वविद्यालय पर निर्भरता जोखिमपूर्ण हो सकती है।
- भारत को अब अपने ही संस्थानों को ग्लोबल स्तर का बनाना होगा, ताकि छात्र विदेश जाने को मजबूर न हों।
निष्कर्ष: क्या यह शिक्षा पर राजनीतिक हमला है?
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर यह कार्रवाई केवल एक संस्थान को नहीं, बल्कि शिक्षा की स्वतंत्रता, विद्यार्थियों के अधिकारों और वैश्विक उच्च शिक्षा के ताने-बाने को प्रभावित कर रही है।
अब देखना होगा कि हार्वर्ड इस संकट से कैसे उबरता है और क्या अमेरिका में शिक्षा का भविष्य केवल राजनीतिक सहमति से तय होगा?
क्या आप भी विदेश में पढ़ाई की योजना बना रहे हैं?
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