पेरिस ओलंपिक 2024 में भारतीय हॉकी टीम की ऐतिहासिक जीत: लगातार दूसरा ब्रॉन्ज किया अपने नाम
पेरिस ओलंपिक 2024 में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने एक और गौरवशाली अध्याय लिखा, जब हरमनप्रीत सिंह की कप्तानी में टीम ने स्पेन को 2-1 से हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया। यह जीत भारतीय हॉकी के लिए विशेष महत्व रखती है, क्योंकि टीम ने 52 साल बाद लगातार दो ओलंपिक में पदक हासिल किया है। इससे पहले, भारतीय टीम ने 2020 के टोक्यो ओलंपिक में भी कांस्य पदक जीता था, जिससे यह साबित हुआ कि भारतीय हॉकी एक बार फिर से अपने सुनहरे दौर में लौट रही है।
पेरिस ओलंपिक 2024 में भारतीय हॉकी टीम
इस कांस्य पदक मुकाबले में भारतीय टीम की सफलता के मुख्य नायक कप्तान हरमनप्रीत सिंह रहे, जिन्होंने 30वें और 33वें मिनट में दो निर्णायक गोल किए। दोनों गोल पेनाल्टी कॉर्नर से किए गए, जिससे भारतीय टीम ने स्पेन के खिलाफ बढ़त बनाई। स्पेन की ओर से मार्क मिरालेस ने 18वें मिनट में गोल किया, लेकिन वे भारतीय टीम की बढ़त को चुनौती देने में नाकाम रहे।
यह मैच खास इसलिए भी था क्योंकि यह भारतीय टीम के अनुभवी गोलकीपर पीआर श्रीजेश का आखिरी अंतरराष्ट्रीय मुकाबला था। श्रीजेश, जिन्हें भारतीय हॉकी की दीवार के रूप में जाना जाता है, ने टोक्यो और पेरिस दोनों ओलंपिक में टीम के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके करियर की यह शानदार विदाई भारतीय हॉकी के इतिहास में यादगार बन गई।
भारत और हॉकी ओलंपिक्स
भारतीय हॉकी टीम के लिए यह ओलंपिक पदक केवल एक जीत नहीं, बल्कि उस संघर्ष और मेहनत का परिणाम है जो टीम ने पिछले कुछ वर्षों में किया है। यह भारत का ओलंपिक हॉकी स्पर्धा में 13वां पदक है, और इस जीत ने देश को एक बार फिर से गर्व का अनुभव कराया है।
हॉकी और ओलंपिक खेलों में भारत का संबंध भारतीय खेल इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ओलंपिक खेलों में ऐसी कामयाबी हासिल की है, जो किसी भी देश के लिए गर्व की बात है। हॉकी में भारत का दबदबा 20वीं सदी के मध्य में ऐसा था कि इसे “हॉकी का स्वर्ण(Gold) युग” कहा जाता है।
हॉकी ओलंपिक्स का इतिहास
हॉकी को पहली बार 1908 के लंदन ओलंपिक में शामिल किया गया, लेकिन भारत की भागीदारी 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक से शुरू हुई। 1928 में पहली बार ओलंपिक में शिरकत करने वाली भारतीय हॉकी टीम ने अपने पहले ही प्रयास में स्वर्ण(Gold) पदक जीता। उस समय, भारतीय टीम ने पूरे टूर्नामेंट में एक भी गोल नहीं खाया और अपनी शानदार तकनीक, खेल कौशल और रणनीति के दम पर सभी मैचों में विजय हासिल की। इस स्वर्णिम विजय ने भारतीय हॉकी का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम रोशन किया और यह सिलसिला अगले तीन दशकों तक जारी रहा।
ध्यानचंद: हॉकी का जादूगर
भारतीय हॉकी टीम की सफलता में मेजर ध्यानचंद का योगदान अविस्मरणीय है। ध्यानचंद को “हॉकी का जादूगर” कहा जाता है, और उनका खेल कौशल ऐसा था कि उनके विरोधी भी उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके। 1928, 1932, और 1936 के ओलंपिक खेलों में ध्यानचंद ने भारतीय टीम को स्वर्ण(Gold) पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद की कप्तानी में भारतीय टीम ने जर्मनी को 8-1 से हराया, जिसमें उन्होंने तीन गोल किए थे। उनकी इस उपलब्धि के बाद उन्हें हॉकी के इतिहास में महानतम खिलाड़ियों में गिना जाने लगा।
स्वर्णिम युग
1928 से 1956 तक का समय भारतीय हॉकी का स्वर्ण(Gold) युग माना जाता है। इस दौरान भारतीय टीम ने लगातार छह ओलंपिक स्वर्ण(Gold) पदक जीते (1928, 1932, 1936, 1948, 1952, 1956)। इस दौर में भारतीय टीम का खेल इतना श्रेष्ठ था कि दुनिया की कोई भी टीम उन्हें टक्कर देने में सक्षम नहीं थी। 1960 के रोम ओलंपिक्स में भारत ने रजत पदक जीता था, इसके बाद 1964 टोक्यो ओलंपिक्स में फिर एक बार स्वर्ण(Gold) पदक अपने नाम किया, और इसके साथ ही 1968 मेक्स्सिको ओलंपिक्स एवं 1972 म्युनिक ओलंपिक्स में कांस्य पदक जीता था.
पतन और पुनरुत्थान
1960 के रोम ओलंपिक में भारत को पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में हार का सामना करना पड़ा और पहली बार भारतीय टीम को रजत पदक से संतोष करना पड़ा। इसके बाद, 1964 के टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम ने स्वर्ण(Gold) पदक जीतकर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस पाया, लेकिन यह जीत आखिरी ओलंपिक स्वर्ण(Gold) पदक साबित हुई। 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक में पहली बार एस्ट्रोटर्फ का इस्तेमाल किया गया, जिससे भारतीय हॉकी को बड़ा झटका लगा। भारतीय खिलाड़ी इस नए मैदान के अभ्यस्त नहीं थे, और इसके बाद भारतीय हॉकी का पतन शुरू हो गया। 1980 के मास्को ओलंपिक में भारतीय टीम ने अंतिम बार स्वर्ण(Gold) पदक जीता, लेकिन उसके बाद भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग समाप्त हो गया।
आधुनिक युग और वापसी
21वीं सदी में भारतीय हॉकी ने कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन 2020 के टोक्यो ओलंपिक और 2024 के पेरिस ओलंपिक्स में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीतकर एक बार फिर दुनिया को अपनी काबिलियत का अहसास कराया। यह पदक 44 साल बाद भारतीय हॉकी के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी टोक्यो ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन किया और चौथा स्थान हासिल किया, जो अब तक का उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।
ओलंपिक में भारतीय हॉकी का पदक
ओलंपिक में भारतीय हॉकी का पदक |
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ओलंपिक |
परिणाम |
एम्सटर्डम 1928 |
स्वर्ण(Gold) |
लॉस एंजेल्स 1932 | स्वर्ण(Gold) |
बर्लिन 1936 | स्वर्ण(Gold) |
लंदन 1948 | स्वर्ण(Gold) |
हेलसिंकी 1952 | स्वर्ण(Gold) |
मेलबर्न 1956 | स्वर्ण(Gold) |
रोम 1960 | रजत(SILVER) |
टोक्यो 1964 | स्वर्ण(Gold) |
मेक्सिको 1968 | कांस्य(BRONZE) |
म्यूनिख 1972 | कांस्य(BRONZE) |
मॉस्को 1980 | स्वर्ण(Gold) |
टोक्यो 2020 | कांस्य(BRONZE) |
पेरिस 2024 |
कांस्य(BRONZE) |
निष्कर्ष
भारत और हॉकी ओलंपिक्स का संबंध भारतीय खेल इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय है। हालांकि भारतीय हॉकी ने कठिन दौर देखा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसके पुनरुत्थान के संकेत मिलने लगे हैं। यह केवल एक खेल नहीं, बल्कि देश की अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। भारतीय हॉकी के भविष्य के लिए यह जरूरी है कि युवा पीढ़ी इस विरासत को आगे बढ़ाए और ओलंपिक में फिर से भारत का परचम लहराए।