
नारी शक्ति वंदन अधिनियम (Nari Shakti Vandan Adhiniyam), जिसे महिला आरक्षण विधेयक 2023 के रूप में जाना जाता है, भारत में राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। यह विधेयक वर्ष 2023 में संसद के विशेष सत्र के दौरान पारित किया गया। इसके तहत लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए 33% सीटों का आरक्षण सुनिश्चित किया गया है।
यह अधिनियम भारतीय संविधान के 106वें संशोधन के तहत पारित किया गया है और इसे 128वां संविधान संशोधन विधेयक कहा गया। इस ऐतिहासिक कानून का उद्देश्य देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम क्या है? | Nari Shakti Vandan Adhiniyam Kya Hai?
नारी शक्ति वंदन अधिनियम का उद्देश्य लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा की कुल निर्वाचित सीटों में से एक-तिहाई (33%) सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करना है। यह आरक्षण अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षित सीटों में भी महिलाओं के लिए लागू होगा।
प्रमुख बिंदु:
- 19 सितंबर 2023: लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत
- 20 सितंबर 2023: लोकसभा में 454 मतों से पारित
- 21 सितंबर 2023: राज्यसभा में 214 मतों से सर्वसम्मति से पारित
- 28 सितंबर 2023: राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति और राजपत्र अधिसूचना
इतिहास और पृष्ठभूमि
महिलाओं को राजनीति में समान भागीदारी देने की मांग वर्षों से चल रही थी। इसकी शुरुआत 1996 में हुई थी जब पहला महिला आरक्षण विधेयक संसद में लाया गया था। हालांकि, राजनीतिक असहमति, सरकारों का बहुमत न होना और लोकसभा का भंग होना इस प्रयास को सफल नहीं बना पाया।
पूर्व प्रयास:
वर्ष | विवरण |
1996 | पहला महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश |
1998–2023 | सरकार ने कई बार विधेयक लाने की कोशिश की, लेकिन विफल रही |
2010 | राज्यसभा में विधेयक पारित, लोकसभा में लंबित रहा |
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ
संविधान संशोधन
नारी शक्ति वंदन अधिनियम, जिसे महिला आरक्षण विधेयक 2023 भी कहा जाता है, भारतीय संविधान के 106वें संशोधन अधिनियम के रूप में पारित किया गया है।
33% आरक्षण का प्रावधान
यह अधिनियम लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा की एक-तिहाई (33%) सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था करता है।
लोकसभा में आरक्षण
- विधेयक के अंतर्गत संविधान में अनुच्छेद 330A जोड़ा गया है, जो अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए पहले से निर्धारित आरक्षण की तर्ज पर महिलाओं के लिए भी सीट आरक्षित करने की व्यवस्था करता है।
- आरक्षित सीटों का चयन चक्रानुक्रम (Rotation) के आधार पर किया जाएगा, यानी हर परिसीमन के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में बदलती रहेंगी।
- अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आरक्षित क्षेत्रों में भी महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी।
राज्य विधानसभाओं में आरक्षण
- अधिनियम में अनुच्छेद 332A जोड़ा गया है, जिसके तहत सभी राज्य विधानसभाओं की प्रत्यक्ष निर्वाचन वाली कुल सीटों में से 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
- यह आरक्षण भी चक्रानुक्रम के सिद्धांत पर आधारित होगा।
दिल्ली विधानसभा में आरक्षण
- दिल्ली को एक विशेष स्थिति देने वाले अनुच्छेद 239AA में संशोधन कर महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया गया है।
- इसके तहत अनुच्छेद 239AA(2)(b) में संशोधन किया गया है, जिससे संसद द्वारा पारित कानून दिल्ली विधानसभा में भी लागू होंगे और वहां भी महिला आरक्षण सुनिश्चित होगा।
प्रयोज्यता और कार्यान्वयन
- अनुच्छेद 334A में यह स्पष्ट किया गया है कि महिलाओं के लिए यह आरक्षण तभी प्रभावी होगा जब नई जनगणना के आधार पर परिसीमन (Delimitation) की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।
- यह परिसीमन 2026 के बाद होने की संभावना है, जिसके बाद आरक्षण लागू होगा।
आरक्षण की अवधि
- महिला आरक्षण प्रारंभ में 15 वर्षों के लिए लागू किया जाएगा।
- आवश्यकता पड़ने पर संसद इसे संवैधानिक संशोधन के माध्यम से आगे बढ़ा सकती है।
सीटों का चक्रानुक्रम (Rotation System)
- विधेयक में यह प्रावधान है कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें प्रत्येक परिसीमन के बाद घूमती रहेंगी, ताकि अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व का अवसर मिल सके।
- यह व्यवस्था लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा सभी पर लागू होगी।
अधिनियम की सीमाएं और आलोचना
राज्यसभा में आरक्षण नहीं: यह अधिनियम केवल प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदनों पर लागू होता है, राज्यसभा और विधान परिषदों पर नहीं।
प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व की आशंका: पंचायतों की तरह यह डर बना हुआ है कि कई बार महिला प्रतिनिधियों के पीछे उनके पुरुष रिश्तेदार ही सत्ता का संचालन कर सकते हैं।
सामाजिक-आर्थिक असंतुलन: यह संभावना है कि केवल संपन्न और प्रभावशाली परिवारों की महिलाएं अधिकतर सीटों पर काबिज होंगी, जिससे पिछड़े वर्गों की महिलाओं को नुकसान हो सकता है।
कोटा में विविधता की कमी: SC, ST और OBC की महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण का प्रावधान न होने से समावेशिता अधूरी रह जाती है।
वास्तविक सशक्तिकरण पर ध्यान की कमी: विधेयक सामाजिक दृष्टिकोण, शिक्षा, नेतृत्व प्रशिक्षण जैसे बुनियादी मुद्दों को हल नहीं करता, जो महिलाओं को राजनीति में सक्रिय भागीदारी के लिए सक्षम बनाते हैं।
UPSC उम्मीदवारों के लिए मुख्य तथ्य
बिंदु | विवरण |
अधिनियम का नाम | नारी शक्ति वंदन अधिनियम |
संविधान संशोधन | 106वां संशोधन अधिनियम |
प्रस्तुत विधेयक | 128वां संविधान संशोधन विधेयक |
आरक्षण प्रतिशत | 33% |
कार्यान्वयन | अगली जनगणना और परिसीमन के बाद |
अवधि | प्रारंभ में 15 वर्ष |
लागू क्षेत्र | लोकसभा, राज्य विधानसभाएं, दिल्ली विधानसभा |
निष्कर्ष
नारी शक्ति वंदन अधिनियम भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक है। हालांकि इसमें कुछ व्यावहारिक चुनौतियाँ और आलोचनाएँ हैं, फिर भी यह अधिनियम महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस और ऐतिहासिक कदम है। यदि इसे प्रभावी तरीके से लागू किया गया तो यह आने वाले वर्षों में राजनीति में महिलाओं की भूमिका को और भी मजबूत बना सकता है।
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