
Prashant Kishor: भारत की राजनीतिक रणनीतियों में क्रांति लाने वाले नामों में अगर किसी एक व्यक्ति का नाम सबसे पहले आता है, तो वह हैं प्रशांत किशोर। कभी पर्दे के पीछे रहकर चुनावी विजय की पटकथा लिखने वाले Prashant Kishor (PK), अब खुलकर राजनीति के मंच पर उतर चुके हैं। यह लेख उनके जीवन, करियर, रणनीतिक उपलब्धियों और अब उनके नए राजनीतिक सफर जन सुराज पर एक व्यापक दृष्टि डालता है।
Prashant Kishor: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के रोहतास ज़िले के कोनार गांव में एक हिंदू परिवार में हुआ है। उनके पिता श्रीकांत पांडे एक चिकित्सक थे, जबकि माँ सुषीला पांडे गृहिणी थीं। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने बक्सर में प्राप्त की है। प्रशांत किशोर के जीवन में शिक्षा और सेवा का बीज यहीं से बोया गया, जिसे उन्होंने बाद में राष्ट्र-निर्माण के माध्यम में बदला। उनकी पत्नी जान्हवी दास असम के गुवाहाटी से हैं और पेशे से चिकित्सक हैं। प्रशांत किशोर का एक पुत्र भी है।
संयुक्त राष्ट्र से राजनीति की ओर
प्रशांत किशोर ने लगभग 8 वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा वित्तपोषित जनस्वास्थ्य कार्यक्रमों में कार्य किया है। 2011 में उन्होंने इस क्षेत्र को छोड़कर भारतीय राजनीति में प्रवेश करने का निर्णय लिया, एवं यह निर्णय आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति की दिशा बदलने वाला साबित हुआ।
रणनीतिकार के रूप में चमत्कारी सफलता
नरेंद्र मोदी और भाजपा (2012–2014)
प्रशांत किशोर की पहली बड़ी राजनीतिक भूमिका 2012 गुजरात विधानसभा चुनाव में थी, जब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए रणनीति तैयार की। इसके बाद उन्होंने 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा के ऐतिहासिक अभियान की नींव रखी।
उन्होंने Citizens for Accountable Governance (CAG) की स्थापना की, जिसने चाय पर चर्चा, 3D रैलियां, रन फॉर यूनिटी, और सोशल मीडिया अभियानों जैसे अभिनव कार्यक्रमों के जरिए नरेंद्र मोदी की छवि को राष्ट्रव्यापी बना दिया।
नीतीश कुमार और महागठबंधन (2015)
2015 बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार के महागठबंधन को निर्णायक जीत दिलाई। इसके बाद वे JDU में शामिल हुए और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। बिहार सरकार में उन्हें नीति और कार्यक्रम क्रियान्वयन सलाहकार भी नियुक्त किया गया।
अन्य सफलताएँ
प्रशांत किशोर ने कई राज्यों में प्रमुख राजनीतिक नेताओं को चुनावी सफलता दिलाई:
- पंजाब (2017) – कैप्टन अमरिंदर सिंह (कांग्रेस)
- आंध्र प्रदेश (2019) – वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी (YSRCP)
- दिल्ली (2020) – अरविंद केजरीवाल (AAP)
- पश्चिम बंगाल (2021) – ममता बनर्जी (TMC)
- तमिलनाडु (2021) – एम.के. स्टालिन (DMK)
पहली असफलता – उत्तर प्रदेश (2017)
प्रशांत किशोर की रणनीति को पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में झटका लगा, जब कांग्रेस को केवल 7 सीटें मिलीं। यह उनके करियर की पहली सार्वजनिक हार थी।
राजनीति से विराम की घोषणा
2021 में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में जीत के बाद PK ने घोषणा की कि वे राजनीतिक रणनीति से संन्यास ले रहे हैं। उन्होंने NDTV को दिए एक साक्षात्कार में कहा:
“अब मैं इससे बाहर निकलना चाहता हूं। बहुत हो गया। अब कुछ नया करने का समय है।”
जन सुराज – राजनीति में नई शुरुआत
2022 में प्रशांत किशोर ने जन सुराज अभियान की शुरुआत की और एक नई राजनीतिक धारा की घोषणा की। उन्होंने 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा शुरू की, जिसका उद्देश्य था बिहार की जनता से सीधा संवाद और एक ईमानदार राजनीतिक विकल्प तैयार करना।
पार्टी की घोषणा
2 अक्टूबर 2024 को गांधी जयंती के अवसर पर प्रशांत किशोर ने औपचारिक रूप से जन सुराज पार्टी की घोषणा की। वे इसे 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में उतारने की तैयारी कर रहे हैं।
निष्कर्ष
प्रशांत किशोर का सफर मात्र एक रणनीतिकार से कहीं आगे का है। उन्होंने भारतीय राजनीति को डेटा, तकनीक और नवाचार से जोड़ा। अब जब उन्होंने सीधे राजनीति में कदम रखा है, तो बिहार और भारत की राजनीति में एक नई सोच, नया नेतृत्व और नई दिशा की उम्मीद की जा सकती है।
क्या जन सुराज बिहार की राजनीति में बदलाव की नई शुरुआत करेगा? आपकी राय नीचे कॉमेंट में ज़रूर बताएं।
Follow WhatsApp Channel
Follow Telegram Channel
Share this articles