आज के तकनीकी युग में, अगर कोई संसाधन चुपचाप लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, तो वह है दुर्लभ खनिज तत्व (Rare Earth Elements – REEs)। चाहे स्मार्टफोन हो, इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टरबाइन या आधुनिक हथियार प्रणाली – इन सभी के पीछे इन सूक्ष्म लेकिन शक्तिशाली तत्वों का हाथ है। लेकिन अब यह संसाधन एक वैश्विक आपूर्ति संकट की ओर बढ़ रहा है, और इसका मुख्य कारण है — चीन द्वारा इन खनिजों पर नियंत्रण को और अधिक सख्त करना।
क्या हो रहा है?
चीन दुनिया के कुल दुर्लभ खनिज उत्पादन का 70% से अधिक हिस्सा नियंत्रित करता है। इनमें लैन्थेनम, नियोडिमियम, डाइस्प्रोसियम और यट्रियम जैसे तत्व शामिल हैं, जो आधुनिक तकनीक में अत्यंत उपयोगी हैं।
हाल ही में, चीन ने इन खनिजों के निर्यात पर सख्त नियम लागू किए हैं — नए लाइसेंसिंग नियम, उत्पादन पर सीमा और पर्यावरणीय कारणों का हवाला देते हुए आपूर्ति कम कर दी गई है। लेकिन इसे वैश्विक व्यापार युद्ध के एक हिस्से के रूप में देखा जा रहा है, खासकर अमेरिका और चीन के बीच।
वैश्विक आपूर्ति संकट
चीन के इस कदम का असर पूरी दुनिया में महसूस हो रहा है:
- अमेरिका, जापान, वियतनाम और जर्मनी जैसे बड़े देश आपूर्ति संकट से जूझ रहे हैं।
- कई देश अब वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहे हैं — घरेलू उत्पादन बढ़ाने या समुद्र की गहराई से खनिज निकालने की कोशिशों के साथ।
जापान ने पहले भी 2010 में चीन द्वारा निर्यात रोके जाने पर अपने भंडार से काम चलाया था। अब वही चिंता फिर से सताने लगी है।
भारत की स्थिति
भारत में दुर्लभ खनिजों की खपत अभी सीमित है, लेकिन यह धीरे-धीरे बढ़ रही है। हाल ही की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के REEs का निर्यात 2023-24 में 23% बढ़ा।
हालाँकि, एक बड़ी बात यह है कि भारत के कुल REE निर्यात का लगभग 65% चीन को ही जाता है, जिससे यह संबंध रणनीतिक रूप से संवेदनशील बन जाता है।
भारत अब घरेलू प्रसंस्करण और रिफाइनिंग क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है, लेकिन इसमें अभी समय लगेगा।
समुद्र की गहराई में छुपा खजाना
धरती के संसाधन सिमटते जा रहे हैं, इसलिए अब ध्यान समुद्र तल की ओर जा रहा है। अमेरिका अब प्रशांत महासागर की गहराई से दुर्लभ खनिज निकालने की योजना बना रहा है, ताकि चीन पर निर्भरता कम की जा सके।
हालाँकि, यह कदम पर्यावरणीय विवादों से घिरा हुआ है, और चीन ने इसका विरोध भी किया है। लेकिन जब माँग तेज़ हो, तो दुनिया इन खनिजों के लिए किसी भी दिशा में जाने को तैयार है।
क्यों ज़रूरी हैं ये दुर्लभ खनिज?
आज की हरित ऊर्जा क्रांति, डिजिटल विकास, और रक्षा क्षेत्र – इन सभी के लिए REEs अनिवार्य हैं। यह संसाधन नाम से “दुर्लभ” ज़रूर हैं, लेकिन इनकी माँग तेजी से बढ़ रही है।
परन्तु, जैसा कि मौजूदा संकट दिखा रहा है, भू-राजनीति (Geopolitics) इन खनिजों को वैश्विक संघर्ष का केंद्र बना सकती है। अब यह केवल खनन का मामला नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, तकनीकी संप्रभुता और वैश्विक नेतृत्व का सवाल बन गया है।
दुर्लभ खनिजों को लेकर दुनिया में होड़ तेज़ हो चुकी है। भारत से लेकर अमेरिका तक, हर देश अपने विकल्प तलाश रहा है। लेकिन आने वाले समय में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन इस संसाधन पर नियंत्रण कर पाता है
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