
विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagara empire in Hindi): भारत के इतिहास में विजयनगर साम्राज्य एक उज्ज्वल अध्याय रहा है। यह साम्राज्य 14वीं शताब्दी में संगम वंश के हरिहर प्रथम और बुक्का प्रथम द्वारा स्थापित किया गया। इसकी स्थापना का उद्देश्य सांस्कृतिक परंपराओं की रक्षा और विदेशी आक्रमणों का सामना करना था। इस साम्राज्य को कर्नाटक साम्राज्य के नाम से भी जाना जाता है।
विजयनगर साम्राज्य की उत्पत्ति और स्थापना | Origin and Foundation of Vijayanagara Empire in Hindi
विजयनगर साम्राज्य का कालखंड
विजयनगर साम्राज्य का काल 1336 से 1646 ईस्वी तक चला, जो लगभग 300 वर्षों तक दक्षिण भारत की प्रमुख शक्ति बना रहा। इस अवधि में निम्नलिखित चार प्रमुख राजवंशों ने शासन किया:
- संगम राजवंश (1336–1485 ई.) – साम्राज्य की स्थापना और प्रारंभिक विस्तार इसी वंश ने किया।
- सलुव राजवंश (1485–1505 ई.) – सैन्य और प्रशासनिक व्यवस्था को पुनर्गठित किया।
- तुलुव राजवंश (1505–1570 ई.) – कृष्णदेवराय के शासन में साम्राज्य अपने चरम पर पहुंचा।
- अरविदु राजवंश (1570–1646 ई.) – तालिकोटा युद्ध के बाद यह वंश कमजोर होता गया।
प्रारंभिक पृष्ठभूमि
विजयनगर की नींव धार्मिक पुनर्जागरण और राजनीतिक स्थिरता के लिए रखी गई। हिंदू संस्कृति, मंदिर और परंपराएं इसकी नींव के केंद्र में थीं। यह राज्य धार्मिक सहिष्णुता और प्रशासनिक दक्षता का प्रतीक बना।
विजयनगर साम्राज्य में प्रशासन | Administration in the Vijayanagara Empire in Hindi
विजयनगर साम्राज्य: प्रशासन और समाज
विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक और सामाजिक व्यवस्था अत्यंत संगठित और प्रभावी थी। इसके राजस्व का मुख्य स्रोत लगान था, जो फसल का लगभग 1/6वाँ भाग होता था। इसके अतिरिक्त विवाह कर भी लिया जाता था, जिसे वर और वधू दोनों को देना होता था; हालांकि विधवा से विवाह करने पर यह कर माफ था। कुछ विशेष सेवाओं के बदले भूमि कर मुक्त कर दी जाती थी, जिसे उंबलि कहा जाता था। युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिवारों को जो भूमि दी जाती थी, वह स्तत्त कोड़गे कहलाती थी।
कुट्टगि उस भूमि को कहा जाता था जिसे ब्राह्मण, मंदिर या बड़े ज़मींदार पट्टे पर किसानों को देते थे। ऐसे कृषक मजदूर, जो भूमि के साथ ही खरीदे-बेचे जाते थे, कूदि कहलाते थे।
प्रशासनिक व्यवस्था
प्रशासनिक व्यवस्था में अलग-अलग विभाग थे। सैन्य विभाग को कदाचार कहा जाता था, जिसका प्रमुख अधिकारी दण्डनायक या सेनापति होता था। वहीं, टकसाल विभाग को जोरीखाना कहा जाता था, जहाँ मुद्रा निर्माण और नियंत्रण किया जाता था। विजयनगर साम्राज्य की प्रमुख मुद्रा पैगोडा थी, जबकि समकालीन बहमनी साम्राज्य में हूण का प्रचलन था।
सामाजिक दृष्टि से भी विजयनगर साम्राज्य में विविधतापूर्ण व्यवस्था थी। मंदिरों में सेवा करने वाली महिलाओं को देवदासी कहा जाता था, जिन्हें जीवनयापन हेतु भूमि और वेतन दिया जाता था। वेरा बग दास व्यापार की प्रथा को दर्शाता है, जिसमें मनुष्यों का क्रय-विक्रय किया जाता था। बीर पंजाल विशेष रूप से निपुण व्यापारी एवं दस्तकार वर्ग को कहा जाता था, जबकि यड़चा वे लोग थे जो उत्तर भारत से आकर दक्षिण भारत में बस गए थे। भूमि के क्रय-विक्रय संबंधी सभी दस्तावेजों का संरक्षक अधिकारी कर्णिक कहलाता था।
यह व्यवस्थाएँ विजयनगर को एक सशक्त और समृद्ध साम्राज्य बनाने में सहायक रहीं।
प्रशासनिक व्यवस्था (Administrative System)
पद/संस्था | विवरण |
कदाचार | विजयनगर साम्राज्य का सैन्य विभाग |
दण्डनायक | सेनापति या सैन्य विभाग का प्रमुख |
जोरीखाना | टकसाल विभाग (जहाँ मुद्रा बनाई जाती थी) |
कर्णिक | भूमि के क्रय-विक्रय संबंधी दस्तावेजों का संरक्षक अधिकारी |
राजस्व/कर व्यवस्था (Revenue System)
कर/प्रथा | विवरण |
लगान | भूराजस्व – फसल का 1/6वाँ भाग |
विवाह कर | वर और वधू से लिया जाता था; विधवा से विवाह पर माफ |
उंबलि | विशेष सेवाओं के बदले दी गई कर-मुक्त भूमि |
स्तत्त कोड़गे | युद्ध में मरे सैनिकों के परिवारों को दी गई भूमि |
कुट्टगि | ऐसी भूमि जो ब्राह्मण/मंदिर आदि द्वारा किसानों को पट्टे पर दी जाती थी |
कूदि | वे कृषक मजदूर जो भूमि के साथ खरीदे-बेचे जाते थे |
Note: सेना में पैदल सैनिक, घुड़सवार, युद्ध हाथी और नौसेना शामिल थी। अमर नायक प्रणाली के अंतर्गत सैनिकों को भूमि दी जाती थी, जिसे “अमरम” कहा जाता था। इन सैनिकों को “अमर नायक” कहा जाता था, जो संकट के समय सम्राट को सहायता प्रदान करते थे।
अर्थव्यवस्था और व्यापार
साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, वाणिज्य और मुद्रा निर्माण पर आधारित थी:
- कृषि: मुख्य फसलें – चावल, कपास, बाजरा, मसाले
- व्यापार: फारस, अरब, चीन, यूरोप से व्यापारिक संबंध
- मुद्रा: स्वर्ण, रजत और ताम्र मुद्रा का प्रचलन
सैन्य शक्ति
विजयनगर साम्राज्य की सेना भारतीय इतिहास की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में से एक थी।
- पैदल सेना और घुड़सवार सेना: सेना में अच्छी तरह से प्रशिक्षित सैनिक और घोड़े थे।
- युद्ध हाथी: हाथियों का उपयोग युद्ध में दुश्मन की टुकड़ियों को तोड़ने के लिए किया जाता था।
- किलेबंदी: आक्रमणों को रोकने के लिए शहरों में विशाल दीवारें और किले होते थे।
- नौसैनिक शक्ति: साम्राज्य ने तटीय रक्षा के लिए एक मजबूत नौसैनिक बेड़ा बनाए रखा।
समाज और संस्कृति
राज्य में साहित्य, संगीत और स्थापत्य कला को राजाश्रय प्राप्त था।
- भाषाएं: संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़ का विकास
- संगीत: कर्नाटक संगीत परंपरा को संरक्षण
- विद्वान: तेनालीराम कृष्णदेवराय के दरबार के प्रमुख कवि थे
स्थापत्य और मंदिर निर्माण
राज्य द्रविड़ स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध था। प्रमुख स्थापत्य:
- विरुपाक्ष मंदिर: धार्मिक स्थल
- विट्ठल मंदिर: संगीतमय स्तंभों और पत्थर के रथ के लिए प्रसिद्ध
- हजारा राम मंदिर: रामायण की कथाओं का चित्रण
- कमल महल: हिंदू-मुस्लिम स्थापत्य का संगम
मंदिरों के प्रवेश द्वार को आमतौर पर “गोपुरम” कहा जाता था। ये ऊंचे और सजीव चित्रों से सज्जित होते थे।
विजयनगर साम्राज्य के महत्वपूर्ण शासक
विजयनगर साम्राज्य के विभिन्न शक्तिशाली शासकों ने अपने राज्य का विस्तार और सुदृढ़ीकरण किया; उनके शासन के माध्यम से साम्राज्य ने महान सैन्य और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ सांस्कृतिक उन्नति भी प्राप्त की।
विजयनगर साम्राज्य के शासकों की सूची:
- हरिहर प्रथम (1336–1356 ई.) – साम्राज्य के संस्थापक।
- बुक्का प्रथम (1356–1377 ई.) – साम्राज्य के क्षेत्रों का विस्तार किया।
- देवराय प्रथम (1406–1422 ई.) – सैन्य शक्ति को सुदृढ़ किया।
- कृष्णदेवराय (1509–1529 ई.) – विजयनगर का स्वर्ण युग, सांस्कृतिक और आर्थिक उत्कर्ष।
- अच्युत देव राय (1529–1542 ई.) – राज्य की समृद्धि को बनाए रखा।
- राम राय (1542–1565 ई.) – तालिकोटा युद्ध में पराजित, जिससे साम्राज्य का पतन शुरू हुआ।
तुलुव वंश और जातीय पृष्ठभूमि
तुलुव वंश की स्थापना वीरनरसिंह ने किया था। यह वंश तुलुव भाषी समुदाय से संबंधित था एवं कृष्णदेवराय इसी वंश के महानतम शासक थे।
कृष्णदेवराय का योगदान
- सैन्य विस्तार: कई विजय प्राप्त कर सीमाओं का विस्तार
- सांस्कृतिक संरक्षण: मंदिर निर्माण, साहित्य और संगीत का विकास
- आर्थिक सुधार: कृषि और व्यापार को सशक्त बनाया
- प्रशासनिक नीतियाँ: जनकल्याण पर केंद्रित नीतियाँ अपनाईं
पतन के कारण
तालिकोटा का युद्ध/राक्षसी-तंगड़ी युद्ध (23 जनवरी, 1565 ई.)
1565 ई. में लड़ा गया तालिकोटा का युद्ध विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में एक निर्णायक और विनाशकारी मोड़ था। दक्कन की चार मुस्लिम सल्तनतों – अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, बीदर – ने आपसी गठबंधन बनाकर विजयनगर साम्राज्य पर संयुक्त हमला किया। इस गठबंधन में बरार शामिल नहीं था. तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर की सेना को पराजय झेलनी पड़ी एवं राजधानी हम्पी को बर्बरता से लूटा गया और तबाह कर दिया गया। इस घटना के बाद साम्राज्य धीरे-धीरे पतन की ओर बढ़ गया और इसकी शक्ति और वैभव समाप्त हो गया।
निष्कर्ष
विजयनगर साम्राज्य एक ऐसा इतिहास है, जो न केवल प्रशासनिक और सैन्य दृष्टि से अपितु सांस्कृतिक और स्थापत्य दृष्टि से भी प्रेरणादायक है। इसकी अमर विरासत आज भी हम्पी के खंडहरों में जीवित है, जो हमें इसकी महानता का स्मरण कराती है।
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