
Webb Miller (वेब मिलर), एक अमेरिकी पत्रकार थे, जिनकी लेखनी ने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की क्रूर सच्चाई को दुनिया के सामने लाने में अहम भूमिका निभाई। पुलित्ज़र पुरस्कार के लिए नामांकित इस युद्ध संवाददाता को भारत की स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, विशेष रूप से नमक सत्याग्रह के दौरान धरसाना सत्याग्रह की दर्दनाक रिपोर्टिंग के लिए याद किया जाता है।
Webb Miller का प्रारंभिक जीवन
वेबस्टर मिलर के रूप में 10 फरवरी 1891 को पोकागन, मिशिगन (USA) में जन्म हुआ था. इसके साथ ही Webb Miller (वेब मिलर) एक साधारण किसान परिवार से आते थे। उनके जीवन पर हेनरी डेविड थॉरो की पुस्तक वाल्डन का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने उनमें नागरिक अवज्ञा और सादगी के आदर्श विकसित हुआ। हाई स्कूल के बाद, मिलर ने कई छोटे-मोटे काम किए, और फिर शिकागो में एक क्राइम रिपोर्टर के रूप में पत्रकारिता की शुरुआत की। बाद में उन्होंने अपना नाम छोटा कर “वेब मिलर” कर लिया ताकि अखबार की बाइलाइन में अच्छा लगे।
दुनिया भर में पत्रकारिता का गौरवशाली करियर
मिलर ने यूनाइटेड प्रेस (UP) के लिए युद्ध संवाददाता के रूप में काम किया और कई ऐतिहासिक घटनाओं को कवर किया, जैसे – पांचो विला अभियान, प्रथम विश्व युद्ध, स्पेनिश गृहयुद्ध, इथियोपिया पर इटली का आक्रमण, और रूस-फिनलैंड युद्ध। उन्हें युद्ध क्षेत्रों में निर्भीक रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता था और उन्हें कई बार पुलित्ज़र पुरस्कार के लिए नामित किया गया।
उन्होंने सीरियल किलर हेनरी डेसिरे लांद्रू की 1922 में फांसी को कवर किया, इसके साथ ही इथियोपिया से ऐसे फील्ड रिपोर्ट भेजी जो इतालवी सैन्य रिपोर्ट से पहले प्रकाशित हुईं, और दूसरी तरफ प्रथम विश्व युद्ध की संधि पर हस्ताक्षर की खबर भी दी।
भारत और नमक सत्याग्रह
वर्ष 1930 में यूनाइटेड प्रेस ने उन्हें महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह को कवर करने के लिए भारत भेजा था। जब तक Web Miller भारत पहुंचे, तब तक गांधी को गिरफ्तार किया जा चुका था। लेकिन वे रुके नहीं — धरसाना साल्ट वर्क्स तक तीखी गर्मी में यात्रा कर वहां पहुंचे, जहां सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में एक विशाल अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन की तैयारी चल रही थी।
21 मई 1930 को Web Miller (मिलर) ने एक अत्यंत वीभत्स दृश्य देखा — ब्रिटिश पुलिस ने निहत्थे सत्याग्रहियों को बेरहमी से पीटा, जिसमें 1,300 से अधिक लोग घायल हुए। उन्होंने लिखा:
“बाईस देशों में अठारह वर्षों की रिपोर्टिंग के दौरान… मैंने कभी भी धारसाना जैसी भयावह घटनाएं नहीं देखीं… कई बार दृश्य इतने दर्दनाक थे कि मुझे क्षणभर के लिए मुंह फेरना पड़ा।”
उनकी 2,000 शब्दों की रिपोर्ट को पहले सरकार ने सेंसर कर दिया, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा, “धरसाना में हुआ यह प्रदर्शन गांधी आंदोलन का सबसे बड़ा समाचार है। मैं इसे पूरी दुनिया तक पहुंचाऊंगा, चाहे इसके बाद मुझे भारत आने से रोका ही क्यों न जाए।”
अंततः यह रिपोर्ट 1,000 से अधिक अखबारों में प्रकाशित हुई और उनकी यह रिपोर्टिंग अमेरिकी कांग्रेस में भी पढ़ी गई, जिससे भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ वैश्विक जनमत तैयार हुआ।
विरासत और वैश्विक प्रभाव
विंस्टन चर्चिल, जो गांधी के आलोचक थे, उन्होंने भी स्वीकार किया कि नमक सत्याग्रह और धारसाना की घटनाओं ने “ऐसी बेइज्जती और चुनौती दी जैसी ब्रिटिश शासन को एशिया में कदम रखने के बाद कभी नहीं मिली।”
मिलर की रिपोर्टिंग से मार्टिन लूथर किंग जूनियर प्रेरित हुए, जिन्होंने अहिंसात्मक संघर्ष का दर्शन अपनाया।
यह रिपोर्ट वैश्विक सिविल अवज्ञा आंदोलनों की प्रेरणा बनी और 1982 की ऑस्कर विजेता फिल्म गांधी में विंस वॉकर नामक किरदार इन्हीं पर आधारित था।
वेब मिलर के अंतिम वर्ष
यूरोप में राजनीतिक घटनाओं को कवर करने और हिटलर, मुसोलिनी, और चेम्बरलेन जैसे नेताओं का साक्षात्कार लेने के बाद, 7 मई 1940 को लंदन अंडरग्राउंड में एक रहस्यमयी घटना में मिलर की मृत्यु हो गई। आधिकारिक रूप से इसे एक दुर्घटना माना गया, लेकिन उनकी मृत्यु अब भी संदेह के घेरे में है। उन्हें मिशिगन के ड्यूई कब्रिस्तान में दफनाया गया।
संबंधित नाम और आंदोलन
वेब मिलर अखबार का नाम: यूनाइटेड प्रेस (UP)
वेब मिलर मिमी: ज्ञात रिकॉर्ड नहीं, संभवतः त्रुटिपूर्ण संदर्भ
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पत्रकार: मिलर की मृत्यु 1940 में हो गई थी, लेकिन लुईस फिशर जैसे पत्रकारों ने उस समय की घटनाएं दर्ज कीं
असहयोग आंदोलन के दौरान विदेशी पत्रकार: मिलर का योगदान मुख्यतः नमक सत्याग्रह के दौरान था
लुईस फिशर: एक और प्रमुख अमेरिकी पत्रकार जिन्होंने गांधीजी की जीवनी लिखी
निष्कर्ष
वेब मिलर सिर्फ एक महान युद्ध संवाददाता नहीं थे, बल्कि भारत की आज़ादी की लड़ाई को पूरी दुनिया तक पहुंचाने वाले एक दुर्लभ विदेशी गवाह भी थे। धारसाना से उनकी प्रत्यक्ष रिपोर्टिंग ने पूरी दुनिया की अंतरात्मा को झकझोर दिया और उपनिवेशवाद की नैतिकता पर सवाल खड़ा किया। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि ईमानदार पत्रकारिता इतिहास को बदल सकती है।
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