भारत के इतिहास में 1757 से 1857 के बीच का समय अनेक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल का रहा है। इस अवधि में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने प्रभाव और प्रभुत्व को तेजी से बढ़ाया जिससे भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में व्यापक असंतोष पैदा हुआ था। इसी असंतोष ने विभिन्न प्रकार के विद्रोहों को जन्म दिया जिनका स्वरूप नागरिक विद्रोह, किसान विद्रोह, आदिवासी विद्रोह और सैनिक विद्रोह के रूप में देखा गया।
इन विद्रोहों ने भारतीय जनता की चेतना और उनकी आजादी की इच्छा को मजबूती दी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित प्रतिरोध का मार्ग प्रशस्त किया। वर्ष 1757 से 1857 तक के विद्रोह विभिन्न प्रकार के हुए थे. इन विद्रोह को चार वर्गों में विभाजित कर सकते है. 1. नागरिक विद्रोह 2. किसान विद्रोह 3. आदिवासी/जनजाति विद्रोह 4. सैनिक विद्रोह
1757 से 1857 तक के विद्रोह की सूची- नागरिक विद्रोह
सन्यासी विद्रोह (1770-1820)
सन्यासी विद्रोह 1770 से 1820 के बीच बंगाल और बिहार के क्षेत्रों में हुआ था। यह विद्रोह तीर्थयात्रियों के तीर्थ स्थलों पर यात्रा करने पर लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ शुरू हुआ था। मजनू शाह, मूसा शाह, चिराग अली, भवानी पाठक और देवी चौधरानी ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था। सन्यासी विद्रोह एक धार्मिक और सांस्कृतिक संघर्ष था जो ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह की पहली कड़ी बना।
सन्यासी के द्वारा शुरू किये जाने के कारण इस संघर्ष को सन्यासी विद्रोह कहा जाता हैं. इनके आक्रमण करने की पद्धति गरिल्ला तकनीक थी. बकिंम चन्द्र अपने किताब आनंदमठ में सन्यासी विद्रोह की चर्चा किये है. इस उपन्यास की रचना 1882ईस्वी में हुई थी.
अहोम विद्रोह (1828-1833)
अहोम विद्रोह असम के अहोम समुदाय द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ छेड़ा गया था। अहोम साम्राज्य के खत्म होने और अंग्रेजों द्वारा असम पर कब्जा करने के बाद, इस क्षेत्र में गहरी असंतुष्टि उत्पन्न हुई। गोमधर कुंवर और रूपचंद कोनार ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। अहोम विद्रोह असम की स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करने का एक संगठित प्रयास था।
रंगपुर का विद्रोह (1783)
रंगपुर विद्रोह 1783 ईस्वी में पश्चिम बंगाल के रंगपुर जिले में हुआ था। धीरज नारायण और नारूलदीन ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था। इस विद्रोह का प्रमुख कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा किसानों पर लगाए गए कर थे। यह विद्रोह किसानों की आर्थिक समस्याओं और ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों के खिलाफ हुआ था।
फराजी विद्रोह (1838-1857)
फराजी विद्रोह एक धार्मिक आंदोलन था जिसकी शुरुआत हाजी शरीयतुल्लाह ने की थी और बाद में दादू मियां ने इसका नेतृत्व किया। यह आंदोलन बंगाल में इस्लामिक सुधारों के उद्देश्य से शुरू हुआ था। ब्रिटिश शासन के आर्थिक और धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ यह विद्रोह एक बड़ी चुनौती बना।
वहाबी आंदोलन (1820-1871)
वहाबी आंदोलन एक इस्लामिक पुनर्जागरण आंदोलन था, जिसका नेतृत्व सैयद अहमद बरेलवी ने किया। इसका प्रमुख केंद्र पटना था। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने का प्रयास था।
1757 से 1857 तक के विद्रोह की सूची- आदिवासी विद्रोह
इसके साथ ही किसान विद्रोहों की एक लंबी श्रृंखला इस अवधि में उभरी थी जो ब्रिटिश शासन की अत्याचारी भूमि कर नीतियों और किसानों पर बढ़ते आर्थिक दबाव के कारण उत्पन्न हुई।
चुआर विद्रोह (1768-1832)
चुआर विद्रोह, जिसे भुमिन विद्रोह भी कहा जाता है, बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ था। इसका नेतृत्व जगन्नाथ ने किया था। यह विद्रोह अकाल और ब्रिटिश सरकार द्वारा भूमि कर में बढ़ोतरी के खिलाफ था। ब्रिटिश नीतियों ने किसानों की स्थिति को और दयनीय बना दिया था जिससे यह विद्रोह हुआ।
हो विद्रोह (1820-1832)
यह विद्रोह भी भूमि कर की अत्यधिक बढ़ोतरी के खिलाफ हुआ था। गंगा नारायण ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था। ब्रिटिश शासन द्वारा किसानों की जमीनों को हथियाने और भूमि कर बढ़ाने के कारण किसानों में असंतोष बढ़ा जो हो विद्रोह के रूप में फूटा।
कोल विद्रोह (1831-1832)
कोल विद्रोह का नेतृत्व बुद्धो भगत और गंगा नारायण ने किया था। यह विद्रोह ब्रिटिश प्रशासन की भूमि कर नीतियों और किसानों के अधिकारों पर हो रहे हमलों के खिलाफ था।
संथाल विद्रोह (1855-1856)
संथाल विद्रोह को हुल आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। इसका नेतृत्व सिद्धों और कान्हू ने किया था। यह विद्रोह दामन-ए-कोह क्षेत्र में हुआ था जो भागलपुर से राजमहल तक फैला था। ब्रिटिश सरकार की नीतियों और जमींदारों के अत्याचारों से परेशान संथाल आदिवासियों ने संगठित होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया।
कुका आंदोलन (1840-1870)
पश्चिमी पंजाब के क्षेत्र में हुआ कुका आंदोलन भी किसानों के असंतोष को दर्शाता है। भगत जवाहर मल ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ संघर्ष करना था।
भारत के विभिन्न आदिवासी समुदायों ने ब्रिटिश शासन और उसकी शोषणकारी नीतियों के खिलाफ विद्रोह किया।
चुआर विद्रोह (1768-1832)
यह विद्रोह बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ था और इसका नेतृत्व जगन्नाथ ने किया था। अकाल और बढ़ते करों के कारण चुआर विद्रोह शुरू हुआ।
पागलपंथी विद्रोह (1813-1833)
यह विद्रोह उत्तरी बंगाल में हुआ था और इसका नेतृत्व करमशाह और टीपू मीर ने किया था। पागलपंथी समुदाय ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया जो उनके धार्मिक और सामाजिक स्वतंत्रता पर हमला कर रहा था।
पहाड़िया विद्रोह (1778)
पहाड़िया विद्रोह का नेतृत्व स्थानीय पहाड़ी जनजातियों ने किया था। यह विद्रोह आदिवासी समुदायों द्वारा ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ प्रतिक्रिया थी।
खोंड विद्रोह (1837-1856)
यह विद्रोह ओडिशा के खोंड आदिवासियों द्वारा किया गया था और इसका नेतृत्व चक्रविश्नोई ने किया था। इस विद्रोह का प्रमुख कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा मानव बलि को रोकने के प्रयास और नए करों का लागू किया जाना था।
कोया विद्रोह (1879-1880)
कोया विद्रोह आंध्र प्रदेश के रम्पा क्षेत्र में हुआ था एवं इसका नेतृत्व टोम्पा सोरा ने किया था। ब्रिटिश नीतियों और करों के खिलाफ यह आदिवासी विद्रोह था।
मुंडा विद्रोह (1895-1900)
मुंडा विद्रोह बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुआ था। इसे उलगुलान विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है. यह विद्रोह आदिवासियों के भूमि अधिकारों और ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों के खिलाफ एक संगठित प्रतिरोध था। बिरसा मुंडा को जनवरी 1900 ईस्वी में गिरफ्तार किया गया था। बिरसा मुंडा ने एकेश्वरवाद पर बल दिया था.
मुंडा जातियों में सामूहिक खेती की परंपरा थी जिसे मुंडारी भूमि व्यवस्था कहा जाता था. लेकिन जागीरदारों ने इस सामूहिक भूमि व्यवस्था को परिवर्तित करके व्यक्तिगत भूमि व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया था. इस कारण से मुंडाओं में रोष व्याप्त हो गया था. इस विद्रोह को सरदारी लड़ाई भी कहा जाता हैं
रम्पा विद्रोह (1879)
यह विद्रोह आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में हुआ था और इसका नेतृत्व अल्लूरी सीता राम राजू ने किया था। यह विद्रोह ब्रिटिश सेना में कार्यरत सैनिकों के बीच असंतोष और उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ था।
कुकी विद्रोह (1917-1919)
कुकी विद्रोह मणिपुर और त्रिपुरा के कुकी जनजातियों द्वारा किया गया था, और इसका नेतृत्व रतन पुइंया ने किया था। यह विद्रोह ब्रिटिश सेना के खिलाफ एक सशस्त्र संघर्ष था।
हाथीखेड़ा विद्रोह (1824)
यह विद्रोह बंगाल के बरसाल क्षेत्र में हुआ था और इसका नेतृत्व टीपू मीर ने किया था। ब्रिटिश सेना और प्रशासन की नीतियों के खिलाफ यह विद्रोह था।
चेंचू विद्रोह (1920-1922)
यह विद्रोह आंध्र प्रदेश में चेंचू जनजाति द्वारा हनुमंथ के नेतृत्व में हुआ था। यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी और सैनिक विद्रोह था।
1757 से 1857 के बीच के विद्रोहों का काल भारतीय समाज में बढ़ते असंतोष, आर्थिक कठिनाइयों, और ब्रिटिश शासन के खिलाफ गुस्से को दर्शाता है।
1757 से 1857 तक के विद्रोह की सूची
नागरिक विद्रोह | |||
विद्रोह | समय | नेतृत्त्वकर्ता | विशेष |
सन्यासी विद्रोह | 1770-1820 | मजनू शाह, मूसा शाह, चिराग अली, भवानी पाठक, देवी चोधरानी | यह विद्रोह तीर्थयात्रियों को तीर्थ स्थानों पर यात्रा करने पर प्रतिबन्ध लगाया जाना था, |
अहोम विद्रोह | 1828-33 | गोमधर कुँवर व रूपचन्द कोनार | |
रंगपुर का विद्रोह (पश्चिम बंगाल) | 1783 | धीरज नारायण व नारूल्दीन | |
फराजी विद्रोह | 1838-1857 | हाजी शरीयतुल्लाह, दादू मियां | यह एक धार्मिक विचारधारा थी. |
वहाबी आन्दोलन | 1820-1871 | सैयद अहमद बरेलवी | प्रमुख केंद्र-पटना |
आदिवासी आन्दोलन | |||
विद्रोह | समय | नेतृत्त्वकर्ता | विशेष |
चुआर विद्रोह (भुमिन विद्रोह) | 1768-1832) बंगाल के मिदनापुर जिले में | जगन्नाथ | अकाल व बढ़ते भूमिकर का विरोध के कारण |
हो विद्रोह | 1820-1832 ईस्वी | गंगा नारायण | भूमि कर के बढ़ाएं जाने के कारण |
कोल विद्रोह | 1831-1832 | बुद्धो भगत व गंगा नारायण | |
संथाल विद्रोह | 1855-1856 ईस्वी | सिद्धों व कान्हू | इसे हुल आन्दोलन भी कहते हैं. इसका क्षेत्र दामन-ए-कोह के नाम से ज्ञात भागलपुर से राजमहल तक का क्षेत्र संथाल बाहुल्य क्षेत्र.
1855 ईस्वी में 37वें रेगुलेशन के अनुसार इस क्षेत्र को नॉन रेगुलेशन जिला घोषित कर दिया. |
कुका आन्दोलन | 1840-1870 ईस्वी | भगत जवाहर मल | इसका क्षेत्र पश्चिमी पंजाब था. |
पागलपंथी विद्रोह | 1813-1833 ईस्वी | करमशाह व टीपू मीर | उत्तरी बंगाल में हुआ था. |
पहाड़िया विद्रोह | 1778 ईस्वी | ||
खोंड विद्रोह | 1837-1856 ईस्वी | चक्रविश्नोई | सरकार द्वारा मानव बलि को रोकने के प्रयास, नए करों को लागू करने के कारण |
कोया विद्रोह | 1879-1880 ईस्वी | टोम्पा सोरा | आन्ध्रप प्रदेश का रम्पा क्षेत्र |
मुंडा विद्रोह | 1895-1900 ईस्वी | बिरसा मुंडा | इसे उलगुलान विद्रोह भी कहा जाता हैं, 1900 ईस्वी में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया गया था. |
रम्पा विद्रोह | 1879 ईस्वी | अल्लूरी सीता राम राजू | आंद्रप्रदेश के गोदावरी जिला |
कुकी विद्रोह | 1917-1919 ईस्वी | रतन पुइंया | मणिपुर व त्रिपुरा के कुकी जनजातियों द्वारा |
हाथीखेड़ा विद्रोह | 1824 ईस्वी | टीपूमीर | बंगाल के बरसाल क्षेत्र |
चेंचू विद्रोह | 1920-1922 ईस्वी | हनुमंथ | आंध्रप्रदेश |