
Sher Shah Suri: शेरशाह सूरी (फरीद खान) उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य के संस्थापक थे। उनके उपनाम ‘सूरी’ की उत्पत्ति उनके पश्तून सूर कबीले से हुई थी। भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अफगान शासक के रूप में, वे अपने असाधारण प्रशासनिक कौशल और सैन्य शक्ति के लिए जाने जाते थे। सूरी वंश के संस्थापक शेरशाह का शासन भले ही अल्पकालिक रहा, लेकिन उनकी नीतियों और सुधारों को बाद में मुगल साम्राज्य ने भी अपनाया। उनकी भूमि राजस्व व्यवस्था, प्रशासनिक सुधार और दूरदर्शी बुनियादी ढाँचे ने भारत की शासन प्रणाली पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
शेरशाह सूरी कौन थे?
फरीद खान उर्फ शेरशाह सूरी का जन्म 1486 में बिहार के सासाराम में हुआ था। वे 1540 से 1545 तक सूरी वंश के सम्राट रहे। उन्होंने राजपूतों के साथ कई युद्ध लड़े और पंजाब, मालवा, सिंध, मुल्तान और बुंदेलखंड पर विजय प्राप्त की। उनका साम्राज्य असम, नेपाल, कश्मीर और गुजरात को छोड़कर पूरे उत्तर भारत में फैला हुआ था।
उन्होंने एक मज़बूत और जवाबदेह प्रशासनिक तंत्र स्थापित किया और सुव्यवस्थित राजस्व प्रणाली लागू की। सेना और कर संग्रह व्यवस्था को कुशलतापूर्वक संचालित किया और सड़कों, सरायों तथा कुओं का निर्माण करवाया।
उदय और विजय अभियान
प्रारंभिक जीवन: शेरशाह, हसन खान नामक एक अफगान जागीरदार के पुत्र थे। पिता से मतभेद के बाद वे जौनपुर के गवर्नर जमाल खान की सेना में शामिल हुए। बाद में बिहार के मुगल शासक के अधीन कार्य करते हुए उन्होंने अपनी बहादुरी से “शेर खान” की उपाधि प्राप्त की — कहा जाता है कि उन्होंने नंगे हाथों से एक बाघ का वध किया था।
बंगाल विजय: 1539 में उन्होंने बंगाल पर कब्ज़ा कर लिया और रणनीति से रोहतासगढ़ किला अपने अधिकार में लिया।
हुमायूँ पर विजय:
- 26 जून 1539 को चौसा के युद्ध में मुगल सम्राट हुमायूँ को परास्त कर “फ़रीद अल-दीन शेरशाह” की उपाधि धारण की।
- मई 1540 में कन्नौज के युद्ध में फिर से हुमायूँ को हराकर बंगाल, बिहार, हिंदुस्तान और पंजाब से बाहर कर दिया।
- अन्य विजय:
- 1542 में मालवा और चंदेरी पर विजय।
- राजस्थान में मारवाड़, रणथंभौर, नागौर, अजमेर, मेड़ता, जोधपुर और बीकानेर में अभियान।
- 1545 तक सिंध, पंजाब, सम्पूर्ण राजपूताना और बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
मृत्यु और उत्तराधिकार
1545 में कालिंजर किले की घेराबंदी के दौरान बारूद विस्फोट में शेरशाह की मृत्यु हो गई। वे केवल पाँच वर्ष शासन कर पाए, लेकिन इस अवधि में उन्होंने एक विशाल साम्राज्य और प्रभावशाली शासन प्रणाली स्थापित की। उनके पुत्र इस्लाम शाह ने 1553 तक शासन किया। उनकी मृत्यु के बाद उत्तराधिकार को लेकर अराजकता फैल गई, जिसका लाभ उठाकर हुमायूँ ने दिल्ली और आगरा पुनः जीत लिया।
शेरशाह सूरी का प्रशासन
मंत्रिपरिषद:
- दीवान-ए-विजारत – राजस्व और वित्त विभाग
- दीवान-ए-आरिज – सेना प्रमुख
- दीवान-ए-रसालत – विदेश मंत्री
- दीवान-ए-इंशा – संचार मंत्री
प्रशासनिक विभाजन:
साम्राज्य का विभाजन: शेरशाह का साम्राज्य 47 प्रशासनिक इकाइयों में बंटा हुआ था, जिन्हें सरकार (Sarkars) कहा जाता था। प्रत्येक सरकार की देखरेख दो प्रमुख अधिकारियों द्वारा की जाती थी — मुख्य शिक्रदार, जो कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार था, और मुख्य मुंसिफ, जो न्यायाधीश के रूप में कार्य करता था।
इन सरकारों को आगे परगनों (Parganas) में विभाजित किया गया था, जहाँ शिक्रदार सैन्य मामलों की देखरेख करता था, अमीन भूमि राजस्व की वसूली का कार्य संभालता था, फोटेदार कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य करता था, और कारकुन लेखाकार होते थे। इसके अतिरिक्त, छोटे प्रशासनिक इकाइयों को इक़्ताओं (Iqtas) के रूप में जाना जाता था।
भूमि राजस्व व्यवस्था:
भूमि को तीन श्रेणियों — उत्तम, मध्यम और निम्न — में बाँटा गया और औसत उपज का एक-तिहाई हिस्सा राज्य को कर के रूप में दिया जाता था। भुगतान नकद या अनाज में किया जा सकता था।
सैन्य व्यवस्था:
घोड़ों पर निशान (ब्रांडिंग) और सवारों का पंजीकरण, पुलिस सुधार, तथा सीमाओं की सुरक्षा।
शेरशाह सूरी के प्रमुख सुधार
कृषक कल्याण: उपज के अनुसार लचीली कर प्रणाली और सेना की आवाजाही से फ़सलों को नुकसान न पहुँचने की व्यवस्था।
व्यापार और वाणिज्य: कर संग्रह प्रणाली सरल, केवल प्रवेश और बिक्री स्थानों पर कर। सिक्कों की धातु शुद्धता सुनिश्चित कर मुद्रा प्रणाली को मानकीकृत किया।
बुनियादी ढाँचा: ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण/मरम्मत, चार प्रमुख राजमार्ग, और व्यापार-यात्रा के लिए सरायें।
मुद्रा सुधार: चाँदी के सिक्के “दाम” और स्वर्ण, रजत, तांबे की त्रिमुद्रा प्रणाली लागू।
कानून और न्याय: निष्पक्ष न्याय, अपराधियों के खिलाफ कठोर दंड, गरीबों को वजीफे।
कला और वास्तुकला: पुराना किला (दिल्ली), सासाराम में मकबरा, और साहित्यकारों का संरक्षण (जैसे मलिक मुहम्मद जायसी — पद्मावत)।
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